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From जैनकोष
जिनभाषित और गणधर द्वारा रचित द्वादशांग श्रुत । यह अनादिनिधन अभ्युदय एवं मोक्ष रूप उच्च फल देने वाला है । इसके चार महाविकार कहे हैं । उनमें प्रथम महाधिकार प्रथमानुयोग में तीर्थंकर आदि सत्पुरुषों के चरित का वर्णन है ।

जिनभाषित और गणधर द्वारा रचित द्वादशांग श्रुत । यह अनादिनिधन अभ्युदय एवं मोक्ष रूप उच्च फल देने वाला है । इसके चार महाविकार कहे हैं । उनमें प्रथम महाधिकार प्रथमानुयोग में तीर्थंकर आदि सत्पुरुषों के चरित का वर्णन है ।