प्रमाण पृष्ठ नं. |
योग स्थान |
जघन्य या उत्कृष्ट |
काल जघन्य |
काल उत्कृष्ट |
सम्भव जीव समास |
उस पर्याय का विशेष समय
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421, 424 |
उपपाद |
जघन्य |
1 समय |
1 समय |
सूक्ष्म, बादर, एक, द्वी, त्रि. चतुरिन्द्रिय |
विग्रहगति में वर्तमान व तद्भवस्थ होने के प्रथम समय
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428 |
उपपाद |
उत्कृष्ट |
1 समय |
1 समय |
पंचेेद्रिय, असंज्ञी, संज्ञी, लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त |
तद्भवस्थ होने के प्रथम समय में
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421, 425 |
एकांतानुवृद्धि |
जघन्य |
1 समय |
1 समय |
उपरोक्त सर्व जीव लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त |
तद्भवस्थ होने के द्वितीय समय
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428 |
एकांतानुवृद्धि |
उत्कृष्ट |
1 समय |
1 समय |
उपरोक्त सर्व जीव लब्ध्यपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त |
एकांतानुवृद्धि योगकाल का अन्तिम समय
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429 |
एकांतानुवृद्धि |
उत्कृष्ट |
1 समय |
1 समय |
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उत्पन्न होने के अन्तर्मुहुर्त पश्चात अनन्तर समय
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423 |
एकांतानुवृद्धि |
जघन्य |
1 समय |
4 समय |
द्वी-संज्ञी निर्वृत्यपर्याप्त |
पर्याप्ति का प्रथम समय पर्याप्ति के निकट
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423 |
एकांतानुवृद्धि |
उत्कृष्ट |
1 समय |
4 समय |
द्वी-संज्ञी निर्वृत्यपर्याप्त |
पर्याप्ति का प्रथम समय पर्याप्ति के निकट
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431, 422, 427 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
4 समय |
सूक्ष्म, बादर, एक-संज्ञी निर्वृत्यपर्याप्त |
छठी पर्याप्ति के प्रथम समय से आगे
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426 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
4 समय |
सूक्ष्म, बादर, एक. लब्ध्यपर्याप्त |
परभविक आयु बन्ध योग्य काल से उपरिम भवस्थिति
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427, 430 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
4 समय |
सूक्ष्म, बादर, एक. लब्ध्यपर्याप्त |
आयु बन्ध योग्य काल के प्रथम समय से तृतीय भाग तक में वर्तमान जीव
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422, 423 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
2 समय |
सूक्ष्म, बादर, एक. निर्वृत्यपर्याप्त |
परंपरा शेष पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त हो चुकने पर
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429, 430 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
2 समय |
द्वी-संज्ञी लब्ध्यपर्याप्त |
स्व स्व भवस्थिति के तृतीय भाग में वर्तमान आयुबन्ध योग्य प्रथम समय से भव के अन्त तक
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422 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
2 समय |
सूक्ष्म, बादर, एक-संज्ञी, लब्ध्यपर्याप्त . |
स्व स्व भवस्थिति के तृतीय भाग में वर्तमान आयुबन्ध योग्य प्रथम समय से भव के अन्त तक
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430 |
परिणाम |
जघन्य |
1 समय |
2 समय |
द्वी-संज्ञी लब्ध्यपर्याप्त |
जीवन के अन्तिम तृतीय भाग के प्रथम समय से विश्रमण काल के अनन्तर अधस्तन समय तक
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431 |
परिणाम |
उत्कृष्ट |
1 समय |
2 समय |
द्वी-संज्ञी, निर्वृत्यपर्याप्त |
परम्परा पांचों पर्याप्तियों से पर्याप्त छह में से एक भी पर्याप्ति के अपूर्ण रहने तक भी नहीं होता।
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