ग्रन्थ:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 38 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
सव्वे खलु कम्मफलं थावरकाया तसा हि कज्जजुदं । (38)
पाणित्तमदिक्कंता णाणं विंदंति ते जीवा ॥39॥
अर्थ:
सभी स्थावर जीवसमूह कर्मफल का, त्रस कर्म सहित कर्मफल का वेदन करते हैं तथा प्राणित्व का अतिक्रमण कर गए वे जीव (सर्वज्ञ भगवान) ज्ञान का वेदन करते हैं।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
अब यहाँ कौन क्या चेतता है ? इसका निरूपण करते हैं । प्रश्न - निरूपण करते हैं इसका क्या अर्थ है? उत्तर - तत्सम्बन्धी प्रश्न होने पर उसका उत्तर देते हैं यह उसका अर्थ है। इसप्रकार प्रश्नोत्तररूप पातनिका के प्रस्ताव में सर्वत्र 'इति' शब्द का अर्थ जानना चाहिए --
[सव्वे खलु कम्मफलं थावर काया विंदन्ति] वे सभी प्रसिद्ध पाँच प्रकार के स्थावर-काय जीव अव्यक्त सुख-दु:ख अनुभव-रूप शुभाशुभ कर्म-फल का वेदन करते हैं, अनुभव करते हैं; [तहा हि कज्जजुदं] दो इन्द्रिय आदि त्रस जीव निर्विकार परमानंद-रूप एक स्वभाव-मय आत्म-सुख को प्राप्त नहीं करते हुए विशेष राग-द्वेष रूप जो कार्य चेतना है, उससे सहित उसी कर्म-फल का अनुभव करते हैं । [पाणित्तमदिक्कंता णाणं विंदंति ते जीवा] तथा जो विशिष्ट शुद्धात्मानुभूति भावना से समुत्पन्न परमानन्द एक सुखामृत-रूप समरसी भाव के बल से दस प्रकार के प्राणों से रहित सिद्ध जीव हैं, वे केवल ज्ञान का अनुभव करते हैं । इसप्रकार इन दोनों गाथाओं में केवल ज्ञान चेतना साक्षात् उपादेय-भूत जानना चाहिए -- ऐसा तात्पर्य है ॥३९॥
इसप्रकार त्रिविध चेतना के व्याख्यान की मुख्यता से दो गाथायें पूर्ण हुईं । (इसप्रकार पाँच अधिकारों के समूहरूप से तेरह गाथायें पूर्ण हुईं ।)