ग्रन्थ:प्रवचनसार - गाथा 259 - तात्पर्य-वृत्ति
From जैनकोष
उवरदपावो पुरिसो समभावो धम्मिगेसु सव्वेसु । (259)
गुणसमिदिदोवसेवी हवदि स भागी सुमग्गस्स ॥297॥
अर्थ:
[उपरतपाप:] जिसके पाप रुक गया है, [सर्वेषु धार्मिकेषु समभाव:] जो सभी धार्मिकों के प्रति समभाववान् है और [गुणसमितितोपसेवी] जो गुणसमुदाय का सेवन करने वाला है, [सः पुरुष:] वह पुरुष [सुमार्गस्य] सुमार्ग का [भागी भवति] भागी होता है । (अर्थात् सुमार्गवान् है) ।
तात्पर्य-वृत्ति:
अथ पात्रभूततपोधनलक्षणं कथयति --
उपरतपापत्वेन, सर्वधार्मिकसमदर्शित्वेन, गुणग्रामसेवकत्वेन चस्वस्य मोक्षकारणत्वात्परेषां पुण्यकारणत्वाच्चेत्थंभूतगुणयुक्तः पुरुषः सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रैकाग्रयलक्षण-निश्चयमोक्षमार्गस्य भाजनं भवतीति ॥२५९॥
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
पाप से रहित होने के कारण, सभी धार्मिकों को समता भाव से देखनेवाले होने के कारण और गुण-समूह का सेवन करनेवाले होने के कारण स्वयं को मोक्ष का कारण होने से और दूसरों के पुण्य का कारण होने से- इसप्रकार के गुणों सहित पुरुष सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप एकाग्रता लक्षण निश्चय मोक्षमार्ग के पात्र हैं ॥२९७॥