ग्रन्थ:सर्वार्थसिद्धि - अधिकार 2 - सूत्र 39
From जैनकोष
336. अथोत्तरयो: किं समप्रदेशत्वमुतास्ति कश्चिद्विशेष इत्यत आह –
336. आगेके दो शरीरोंके प्रदेश क्या समान हैं या उनमें भी कुछ भेद है। इस बातको बतलानेके लिए आगेका सूत्र कहते हेा –
अनन्तगुणे परे।।39।।
परवर्ती दो शरीर प्रदेशों की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्तगुणे हैं।।39।।
337. प्रदेशत इत्यनुवर्तते, तेनैवमभिसंबन्ध: क्रियते – आहारकात्तैजसं प्रदेशतोऽनन्तगुणम्, तैजसात्कार्मणं प्रदेशतोऽनन्तगुणमिति। को गुणकार: ? अभव्यानामनन्तगुण: सिद्धानामनन्तभाग:[1]।
337. पूर्व सूत्रसे ‘प्रदेशत: इस पकी अनुवृत्ति होती है। जिससे इसका सम्बन्ध करना चाहिए कि आहारक शरीरसे तैजस शरीरसे प्रदेश अनन्तगुणे हैं और तैजस शरीरसे कार्मण शरीरके प्रदेश अनन्तगुणे हैं। शंका – गुणकार क्या है ? समाधान – अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंका अनन्तवाँ भाग गुणकार है।
पूर्व सूत्र
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सर्वार्थसिद्धि अनुक्रमणिका
- ↑ --मनन्तो भाग: ता., ना.।