योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 449
From जैनकोष
सर्वज्ञता से मोक्षमार्ग में एकरूपता -
सर्वज्ञेन यतो दृष्टो मार्गो मुक्तिप्रवेशक: ।
प्राञ्जलोsयं ततो भेद: कदाचिन्नात्र विद्यते ।।४४९।।
अन्वय :- यत: सर्वज्ञेन दृष्ट: अयं मुक्तिप्रवेशक: मार्ग: प्राञ्जल: (अस्ति) । तत: अत्र (मोक्षमार्गे) कदाचित् भेद: न विद्यते ।
सरलार्थ :- क्योंकि केवलज्ञान से देखा अर्थात् जाना गया मुक्तिप्रवेशमार्ग अर्थात् मोक्षमार्ग प्रांजल अर्थात् स्पष्ट एवं निर्दोष है; इसलिए मोक्षमार्ग के स्वरूप में तथा कथन में कभी कोई मतभेद नहीं होता; इसका अर्थ मोक्षमार्ग में नियम से एकरूपता रहती है ।