योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 485
From जैनकोष
सच्चे त्याग का स्वरूप -
ज्ञानवन्त: सदा बाह्यप्रत्याख्यान-विशारदा: ।
ततस्तस्य परित्यागं कुर्वते परमार्थत: ।।४८५।।
अन्वय :- तत: बाह्यप्रत्याख्यान-विशारदा: ज्ञानवन्त: परमार्थत: तस्य (विपर्यय-ज्ञानस्य) सदा परित्यागं कुर्वते ।
सरलार्थ :- इसकारण बाह्य पदार्थो के त्याग में प्रवीण अर्थात् सम्यग्ज्ञान के धारक साधक मिथ्यात्व का वास्तविकरूप से त्याग करते हैं ।