योगसार - जीव-अधिकार गाथा 28
From जैनकोष
भूत-भावी पदार्थो को जानने का स्वरूप -
अतीता भाविनश्चार्था: स्वे स्वे काले यथाखिला:।
वर्त ानास्ततस्तद्वद्वेत्ति तानपि केवलम् ।।२८ ।।
अन्वय :- तत: अतीता: भाविन: च अखिला: अर्था: स्वे स्वे काले यथा वर्ताना: तान् अपि केवलं (केवलज्ञानं) तद्वत् वेत्ति ।
सरलार्थ :- अतीत और अनागत सम्पूर्ण पदार्थ अपने-अपने काल में जिस-जिस रूप में वर्तते हैं; उनको उसी रूप में वर्तानकालीन पदार्थो के समान केवलज्ञान जानता है ।