योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 257
From जैनकोष
सर्वोत्तम निर्जरा का स्वामी -
आत्मतत्त्वरतो योगी कृत-कल्मष-संवर: ।
यो ध्याने वर्तते नित्यं कर्म निर्जीर्यतेsमुना ।।२५७।।
अन्वय :- य: कृत-कल्मष संवर: आत्म-तत्त्व-रत: योगी नित्यं ध्याने वर्तते अमुना कर्म निर्जीर्यते ।
सरलार्थ :- जो मुनिराज निज शुद्ध आत्मतत्त्व में सदा लवलीन रहते हैं, जिन्होंने सकल कषाय-नोकषायरूप पाप का संवर किया है तथा जो सदा मात्र ध्यान में प्रवृत्त रहते हैं, वे ही कर्मो की उत्कृष्ट निर्जरा करते हैं, अन्य कोई नहीं ।