योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 260
From जैनकोष
संपूर्ण कर्म-मल को धो डालनेवाले का स्वरूप -
त्यक्तान्तरेतरग्रन्थो निर्व्यापारो जितेन्द्रिय: ।
लोकाचारपराचीनो मलं क्षालयतेsखिलम् ।।२६०।।
अन्वय :- त्यक्त-अन्तर-इतर-ग्रन्थ:, निर्व्यापार:, जितेन्द्रिय: लोकाचारपराचीन: (साधु:) अखिलं (कर्म) मलं क्षालयते ।
सरलार्थ :- जो मुनिराज मिथ्यात्व-कषायादि अन्तरंग परिग्रह तथा क्षेत्र-वास्तु आदि बहिरंग परिग्रह के संपूर्ण त्यागी; असि, मसि आदि षट्कर्मो से रहित एवं जितेन्द्रिय हैं और लोकाचार से पराङ्ुख होकर अलौकिक हो गये हैं, वे महान योगी सम्पूर्ण कर्म-मल को धो डालते हैं ।