योगसार - निर्जरा-अधिकार गाथा 271
From जैनकोष
निर्विकल्प अर्थात् वीतरागता से निर्जरा -
शुभाशुभ-विकल्पेन कर्मायाति शुभाशुभम् ।
भुज्यमानेs खिले द्रव्ये निर्विकल्पस्य िन जर् रा । । २ ७ १ । ।
अन्वय :- शुभ-अशुभ-विकल्पेन शुभ-अशुभं कर्म आयाति । अखिले द्रव्ये भुज्यमाने (अपि) निर्विकल्पस्य निर्जरा (जायते) ।
सरलार्थ :- अज्ञानी/मिथ्यादृष्टि को शुभाशुभ विकल्प अर्थात् राग-द्वेष के कारण पुण्य- पापरूप कर्म का आस्रव-बंध होता है । सम्पूर्ण द्रव्य समूह अर्थात् स्पर्शादि सर्व विषयों को भोगते हुए भी जो निर्विकल्प अर्थात् कथंचित् वीतरागी है, उसको कर्म की निर्जरा होती है ।