योगसार - मोक्ष-अधिकार गाथा 349
From जैनकोष
मोही जीवों का स्वरूप -
आत्म-तत्त्वमजानाना विपर्यास-परायणा: ।
हिताहित-विवेकान्धा: खिद्यन्ते सांप्रतेक्षणा: ।।३४९।।
अन्वय :- (ये जीवा:) आत्म-तत्त्वं-अजानाना, हित-अहित-विवेकान्धा:, विपर्यासि परायणा: (सन्ति ते) सांप्रतेक्षणा: खिद्यन्ते ।
सरलार्थ :- जो जीव निज आत्मतत्त्व को नहीं जानते, हित-अहित के विवेक में अंधे हैं अर्थात् अपने हित-अहित को नहीं पहिचानते, विपरीत आचरण करने में चतुर हैं और वर्तान दृष्टिवंत अर्थात् स्पर्शादि विषयों का सेवन करने में ही सुख है, ऐसी श्रद्धा रखनेवाले हैं; वे जीव नियम से दु:खी हैं ।