योगसार - संवर-अधिकार गाथा 236
From जैनकोष
सामायिक आदि में प्रवर्तान साधु को संवर होता है -
सामायिके स्तवे भक्त्या वन्दनायां प्रतिक्रमे ।
प्रत्याख्याने तनूत्सर्गे वर्तानस्य संवर: ।।२३६।।
अन्वय :- भक्त्या सामायिके, स्तवे, वन्दनायां, प्रतिक्रमे, प्रत्याख्याने, (च) तनूत्सर्गे वर्तानस्य (साधो:) संवर: (जायते) ।
सरलार्थ :- जो साधु भक्तिपूर्वक सामायिक, स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग में प्रवर्तन करते हैं, उनके संवर अर्थात् कर्मास्रव का निरोध होता है ।