योगसार - संवर-अधिकार गाथा 237
From जैनकोष
सामायिक का स्वरूप -
यत् सर्व-द्रव्य-संदर्भे राग-द्वेष-व्यपोहनम् ।
आत्मतत्त्व-निविष्टस्य तत्सामायिकमुच्यते ।।२३७।।
अन्वय :- आत्मतत्त्व-निविष्टस्य (साधो:) सर्व-द्रव्य-संदर्भे यत् राग-द्वेष व्यपोहनं (अस्ति), तत् सामायिकं उच्यते ।
सरलार्थ :- निज शुद्धात्मतत्त्व में मग्न/लीन मुनिराज के जीवादि सर्व द्रव्यों के सम्बन्ध में जो राग-द्वेष का परित्याग अर्थात् वीतरागभाव है, उसे सामायिक कहते हैं ।