वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1133
From जैनकोष
रागादिगहने खिन्नं मोहनिद्रावशीकृतम्।
जगन्मिथ्याग्रहाविष्टं जन्मपंके निमज्जति।।1133।।
मोहनिद्रावशीकृत लोक का जन्मपंक में निमज्जन:―यह संसार अर्थात् संसार के सभी प्राणी रागादिक के गहन वन में तो खेदखिन्न होते हैं। जैसे कोई घने जंगल में फँस जाय, किसी ओर कष्ट भी न मालूम पड़े, दिशा का भी भान न रहे, बड़े-बड़े घने जंगलों में सूर्य तो दिखता नहीं, प्रकाश भी नहीं आता हे तो यह भान भी करना कठिन है कि किस ओर कौनसी दिशा है? तो जैसे इस प्रकार के गहन वन में कोई पंथ भूल जाय तो वह बड़ा खेदखिन्न होता है इसी प्रकार रागादिक का गहन वन है, इसमें ओरछोर की बात नहीं मालूम पड़ती। फँसाव में फँसाव बढ़ता ही जाता है। एक ओरसे स्नेह के वचन निकलें, दूसरी ओर से भी वचन निकलें तो रागादिक का गहन वन जरूर गहन होता चला जाता है। ऐसे रागादिक विकारों के गहन वन में जो खेदखिन्न होता है वह प्राणी जरूर वही मोहरूपी निद्रा के वशीभूत हुआ मिथ्यात्वरूपी पिशाच से ग्रसा गया, ऐसा यह प्राणी जन्मरूपी पंक में डूबता है। जन्म से, संसार से निकल जाना यद्यपि इस जीव के लिए बड़ी सुगम बात है, कष्ट की भी कोई बात नहीं है, लेकिन मोह का ऐसा प्रताप है कि जिनमें कष्ट नाना भरे हैं उनके लिए तो रुचि चलती है और जिनमें कष्ट का नाम नहीं, विशुद्ध आनंद का ही जहाँ परिहार हे ऐसा यह शिवपथ आत्मशांति का मग इसे कष्टदायक प्रतीत होता है। जो मोह रागद्वेष के वशीभूत है वह जन्मरूपी कीचड़ में डूबता है। जो रागवश है वह वशीभूत है, उसे अवश नहीं कहा। अवश नाम उसका है जो विकारों के वश न हो और उस अवश पुरुष का जो कार्य है उसका नाम है आवश्यक। जो रागादिक के वशीभूत है उस पुरुष के आवश्यक काम नहीं हो सकता। आवश्यक शब्द सभी मनुष्यों में आज जोर पकड़ रहा है। आवश्यकताएँ पूरी नहीं होती। आवश्यक काम आगे पड़ा रहता है, पर यह तो बतावो कि आवश्यक शब्द का अर्थ क्या है? जो काम मुनियों को करना चाहिये उन कामों का नाम है आवश्यक। अवश: कर्म इति आवश्यकं। जो रागादिक विकारों के वश नहीं होता हैउस पुरुष का नाम है अवश। और अवश का जो भी कर्तव्य है उसका नाम हे आवश्यक। आवश्यक शब्द का जरूरी अर्थ कहाँसे निकल आया? शब्द में नहीं पड़ा है लेकिन योगी संतों को जरूरी काम था वह आवश्यक, अपने आत्मा के स्वरूप में मग्न होने के लिए जो कर्तव्य किया जाता था। तो महंत पुरुषों के लिए जो जरूरी काम है उस काम का नाम है यद्यपि आवश्यक लेकिन आवश्य शब्द का अर्थ लगेगा जरूरी चीज। जो रागादिक विकारों के वशीभूत हैं ऐसे प्राणियों के भवभ्रमण ही हुआ करता है। अपने आपको पदपद पर बहुत सम्हालने की आवश्यकता है। होते हों, रागादिक हों, पर ये रागादिक मेरे नहीं, हितरूप नहीं, मेरे लिए कलंक हैं, बरबादी के कारण हैं― इस प्रकार की भावना बनाकर होते हुए भी रागादिक से दूर रहना और अपने आपको ज्ञानमात्र समझकर इस ज्ञानस्वरूप में मग्न होने का पुरुषाथ्र करना।