वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1296
From जैनकोष
सरितां संगमे द्वीपे प्रशस्ते तरुकोटरे।
जीर्णोद्याने स्मशाने वा गुहागर्भे विजंतुके।।1296।।
ध्यान करने योग्य स्थान कौन-कौन हैं, उसके प्रसंग में कहा जा रहा है कि ध्यानार्थी योगी पुरुष को ऐसे स्थानों में ध्यान करना चाहिए। ध्यान नाम है बाह्य पदार्थों में चित्त न जाय, मोह रागद्वेष न उपजे, उसमें कल्पनाएँ न जगें, केवल अपने आपका जो सहज विशुद्ध स्वरूप है उसमें मग्नता हो उसे कहते हैं ध्यान। सारभूत कर्तव्य तो यही है ऐसा ध्यान किन स्थानों में बनता है? जहाँ नदियों का संगम हो। कोई नदी किसी दिशा से आये कोई किसी दिशा से, जहाँ दोनों का मिलाप हो वह स्थान अद्भुत होता है। ऐसा स्थान जैन तीर्थ में एक सिद्धकूट है। तो जहाँ नदियों का संगम हो ऐसे स्थान में मन कुछ ऐसा अन्य पदार्थों से हटा हुआ रहता है कि स्वयं ही आत्मा के ध्यान करने की पात्रता जगती है और यों कह लीजिये कि जिसको ध्यान करने की उत्सुकता नहीं वह नदियों के संगम पर रहेगा ही क्यों? जहाँ समुद्रों के बीच कोई टापू हो ऐसा प्रशस्त द्वीप हो, एकांत हो, कोई आने जाने का रास्ता न हो, ऐसा स्थान हो जहाँ सुगमता से कोई आ न सके। सीधी सी बात यह है, और वह स्थान होता है निर्जन। वह स्थान जब रागद्वेष के आश्रयभूत बाह्य जीव और परिकर न मिलें तो अपने आप आत्मा की ओर उपयोग झुकता है। ऐसी वृक्ष की खोल हो जो किसी बड़े मोटे पेड़ में बनी हो, एक तरफ से खुली हो, तीन तरफ से घिरी हो, जिस जगह जीव-जंतु न हों ऐसे स्थान में ध्यान करना चाहिए। ऐसा खोल सड़क के पास नहीं हो। आवागमन जहाँ न हो वहाँ ध्यान करना चाहिए। जीर्ण उद्यान हो, बहुत बढ़िया सज़ा हुआ नहीं। वहाँ तो आराम के लिए लोग स्थान बनवाते हैं, मालिक नौकर आदि सभी रहते हैं। ऐसा उद्यान हो जो जीर्ण शीर्ण सा हो, जहाँ किसी का आवास न हो ऐसा स्थान ध्यानी के योग्य है। आत्मध्यान करे श्मशान में। वहाँ कोई पहुँचेगा ही क्यों? हाँ कोई मरकर वहाँ पहुँचेगा तो उसके संग में बरात पहुंचेगी। वैसे वहाँ कौन जायगा? तो ऐसे श्मशान के स्थान पर ध्यान करना ध्यानी के लिए योग्य है। वहाँ कुछ ख्याल रहता है कि एक दिन हमारा भी मरण होगा, ऐसी ही स्थिति सबकी आती है। इस संसार में अन्याय से रहकर लाभ क्या है? न्यायनीति से रहना, सदाचार से रहना ये सब बातें प्रेरणा में आती हैं, तो वहाँ भावनाएँ अच्छी बनती हैं। तो जीर्ण श्मशान में, खोलो के बीच, प्रासुप स्थान में ध्यानार्थी को ध्यान करना योग्य है।