वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1299
From जैनकोष
शून्यवेश्मन्यथ ग्रामे भूगर्भे कदलीगृहे।
पूरोपवनवेद्यंते मंडपे चैत्यपादपे।।1299।।
सूने घर में, जंगल में या गाँव के बहुत अंत में जहाँ से गाँव हट आया है वहाँ कोई सूना घर मिले तो उस घर में, जिसका अब कोई मालिक नहीं रहा, कोई उसका रखवाला भी नहीं रहा ऐसे घर में रहकर ध्यानी पुरुष ध्यान करें। ये ध्यानार्थी छुप छुपकर अपना आत्मीय आनंदरस लूटते रहते हैं। उन्हें लोक में रहने का चित्त नहीं चाहता, अपने एक आत्माराम में ही रमकर सुखी रहते हैं। गृह में तो तलघर बने होते हैं उनमें ध्यानार्थी पुरुष ध्यान करते हैं। पहिले जमाने में लोग कदली गृहों में अर्थात् केलों के बीच में बैठकर ध्यान किया करते थे। पुर उपवन, बागबगीचा के अंत में जहाँ से बाग शुरू होता, जहाँ निजनता रहती वहाँ भी ध्यानी पुरुष ध्यान करते हैं और चैत्य वृक्षों में, मंडपों के स्थानों में भी ध्यान करते हैं।