वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1346
From जैनकोष
विकल्प न प्रसूयंते विषयाशा निवर्तते।
अंत: स्फुरति विज्ञानं तत्र चित्ते स्थिरीकृते।।1346।।
फिर उस हृदय कमल की कणिका में उस हवा के साथ चित्त को स्थिर करने पर मन में विकल्प नहीं उठते और कषायों की आशा भी दूर हो जाती है तथा अंतरंग में विशेष ज्ञान का प्रकाश होता है। पवन की साधना का फल क्या है? मन का वश करना। उस हवा में, श्वास में, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र बसा हुआ है। वह तो आत्मा में ही है, पर उस प्राणायाम की विधि से एक मन की रुकावट होती है, मन नियंत्रित होता है और जब मन नियंत्रित होता है तब वहाँ ध्यान की सिद्धि होती है। इस प्राणायाम से एक ही ओर तो विकल्प रहा, बाहर में अनेक जगह के ख्याल विकल्प ये नहीं रहते। तो ऐसे जब हम मन को नियंत्रित कर लते हैं तो उसे हम अपने तत्त्वज्ञान में लगायें तो लगा भी सकते हैं। अतएव प्राणायाम करना एक ध्यान साधक को प्रारंभ में कुछ आवश्यक सा भी है।