वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1351
From जैनकोष
घोणाविवरमध्यास्य स्थितं पुरचतुष्टयम्।
पृथक् पवनसंवीतं लक्ष्यलक्षणभेदत:।।1351।।
प्राणायाम में चार प्रकार की पवनों का वर्णन है। नासिका के छिद्र का आशय करके जो चार प्रकार के मंडलरूप वायु निकलती है सो लक्ष्य लक्षण के भेद से वे चार प्रकार से माने गए हैं। एक निमित्त ज्ञान का यह विषय है कि अपने श्वास की वायु की पहिचान से इष्ट और अनिष्ट का ज्ञान कर लिया जाता है। और वह वायु जो इष्ट अनिष्ट के ज्ञान से बनी है वह चार रूपों में बैठती है। पृथ्वीमंडल, जलमंडल, अग्निमंडल और वायुमंडल। उनका ही अब माहात्म्य और लक्षण आगे कहेंगे।