वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1373
From जैनकोष
उदये वामा शस्ता सितपक्षे दक्षिणा पुन: कृष्णे।
त्रीणि त्रीणि दिनानि तु शशिसूर्यस्योदय:श्लाध्य:।।1373।।
शुक्ल पक्ष के दिनों में सर्वप्रथम दिन और द्वितीया और तृतीया के दिन प्रात:काल यदि बायें ओर से श्वास निकलें, श्वास आये जाये तो वह शुभ माना गया है। शुक्लपक्ष भी चंद्रमा का माना गया है, और बायें अंग से श्वास निकालना भी चंद्रस्वर माना गया है, इसी कारण शुक्लपक्ष के पहिले दिन प्रात:काल बायें स्वर से श्वास आये तो वह शुभमंडल बताने वाली मानी गयी है, और तरह द्वितीया और तृतीया के दिन भी। इसके पश्चात् शुक्लपक्ष की चौथी, पांचवीं और छठी के दिन प्रात:काल सूर्यस्वर से अर्थात् दाहिनी ओर से स्वर आता जाता प्रतीत हो तो भी उसका शुभ मंगल फल है। इस तरह तीन-तीन दिन बदल बदलकर स्वर का होना शुभ बताया गया है और कृष्णपक्ष के दिनों में शुरू के तीन दिनों में प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया के दिन प्रात:काल दाहिने सूर्य से सूर्यस्तर से श्वास आये तो वह सगुन मानागया है। कृष्णपक्ष चंद्रमा का पक्ष नहीं है, उसे सूर्यपक्ष कह लीजिए परिरोस न्याय में नासिका का दाहिना स्वर भी सूर्यस्वर कहलाता है, अत: प्रथम तीन दिनों में दाहिनी ओर से श्वास का निकलना आना जाना शुभ माना गया है। इसी प्रकार अब आगे तीन-तीन दिन परिवर्तित करके शुभ मानाहै अर्थात् कृष्णपक्ष में चौथी, पांचवीं, छठवीं की तिथि में बामस्वर से श्वास आये जाये तो शुभ मानाहै। इस तरह परिवर्तित कर तीन-तीन दिन की बात समझना चाहिए। इसका तो जो कोई भी अपने आप अंदाज लगा सकता है। जैसे आजकल कृष्णपक्ष चल रहा है, और आज पंचमी का दिन है, कल षष्ठी का दिन होगा तो इस कथन के अनुसार षष्ठी के दिन बामस्वर से श्वास का आना जाना प्रात:काल हो तो समझना कि हमारा आज का दिन अच्छा व्यतीत होगा। यह प्राणायाम के शास्त्रों के अनुसार बात कही जा रही है। यद्यपि ये बातें मोक्षमार्ग में कोई उपकारी नहीं हैं। स्वर देखना, शुभ अशुभ परखना, इसका क्या प्रयोजन है― अभ्युक्त पुरुष को लौकिक प्राणायाम की साधना में क्या-क्या और चमत्कार होते हैं, परिज्ञान होते हैं उनको बताया जा रहा है। जो ध्यानी पुरुष हैं उनको ये सब स्वरविज्ञान खूब हो भी जाते हैं लेकिन उनके प्रयोग करने की भावना नहीं रहती। वे तो संसार के संकटों से छूटने के उद्यम में ही रहा करते हैं।