वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1372
From जैनकोष
वामायां विचरंतौ दहनसमीरौ तु मध्यमौ कथितौ।
वरुणेंद्रावितरस्यां तथाविधावेव निर्दिष्टौ।।1372।।
चार प्रकार के मंडल होते हैं― पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु। इन श्वासों का स्वरूप पहिले है। पृथ्वीमंडल की श्वास कुछ साधारण गर्म होती है। जलमंडल की श्वास शीतल होती है, अग्निमंडल की श्वास अति गर्म होती है और वायुमंडल की श्वास नाभि के किसी एक जगह से नहीं निकलती, किंतु घूमकर कभी किसी किनारे से, कभी किसी किनारे से यों बहती हुई श्वास निकलती है। उन चार प्रकार के मंडलों में यह बात बतला रहेहैं कि अब अग्निमंडल और वायुमंडल की श्वास नाक से निकले तब उसका फल मध्यम है। नासिका के बाई ओर से श्वास शीतल शांत संतोष उत्पन्न करने वाली बताया है और दाहिनी ओर से निकली हुई श्वास एक चल कार्य को और क्रूरता आदिक को भी बताती है। तो अग्निमंडल और वायुमंडल स्वभाव से क्रूर हैं। वे यदि इस शांत चंद्र स्वर से निकलते हैं तो उनकी क्रूरता का प्रभाव कम हो जाता है। इसी कारण उनका फल मध्यम फल रह जाता है और जल तथा पृथ्वीमंडल यदि दाहिने स्वर से निकलते हैं तो उनका भी फल मध्यम है। अब इसके बाद एक साधारण बात कहेंगे, जो बिना मंडल परीक्षा के भी अपनी श्वास से लोग शुभ अशुभ फल जान सकेंगे।