वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1672
From जैनकोष
ऊर्ध्वाधोमध्यभागैर्यो विभर्ति भुवनत्रयम्।
अत: स एव सूत्रज्ञैस्त्रैलोक्याधार इष्यते।।1672।।
लोक के ऊर्ध्व, मध्य व अधोभाग का निर्देश―यह जो लोक है वह तीन भागों में बंटा हुआ है―ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक। इस वजह से इस समस्त लोक को तीन लोक का आधार भी कह सकते हैं। प्रथम तो आधार की कोई बात नहीं है, चाहे लोक कहो, चाहे तीन लोक कहो―ये सब पुरुषाकार रूप में हैं। जैसे 7 बालक बराबर के ऊंचे एक के पीछे एक खड़ा कर दें, 7 बालकों की लाइन लग गयी। सभी पैर पसारकर कमर पर हाथ धरकर खड़े हो तो वह लोक का नक्शा बन जाता है। एक बालक को एक राजू चौड़ा मान लेते हैं, 7 राजू पीछे चौड़ा है, सर्वत्र जहां से देखो और सामने से देखो 7 राजू कमर पर एक राजू टिहुनियों पर 5 राजू और गले पर एक राजू उनका जोड़ किया जाय तो 343 घन राजू बैठेगा, तो इस प्रकार तीन लोक के विभाग के रूप में यह समस्त लोक है। उस लोक के चारों तरफ क्या है, उसका वर्णन कर रहे हैं।