वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1757
From जैनकोष
ततो नभसि तिष्ठंति विमानानि दिवौकसाम् ।
चरस्थिरविकल्पानि ज्योतिष्काणां यथाक्रमम् ।।1757।।
मनुष्यक्षेत्र के ऊपर तथा मध्यलोक में अन्यत्र ऊपर ज्योतिष्क देवों के आवास का संकेत―ऊर्ध्व लोक के वर्णन से पहिले मध्यलोक से ऊपरी भाग का वर्णन किया जा रहा है कि ज्योतिषी देव ऊर्ध्वलोक में नहीं रहते, ये मध्यलोक में ही हैं । लेकिन मध्यलोक में ऊपर रहते हैं । सो ज्योतिषी देवों के ये विमान जो कुछ भी नजर आते हैं, सूर्य, चंद्र, तारे यै सब विमान हैं, ये कोई तो स्थिर हैं और कोई चलने वाले हैं । मनुष्य लोक में तो प्राय: चलने वाले विमान हैं, ध्रुवतारा वगैरह कुछ ही ऐसे विमान हैं जो जहाँ के तहां रहते हैं, बाकी तो सभी विमान सुदर्शन मेरु की परिक्रमा देते रहते हैं । मनुष्य लोक से बाहर के जितने विमान हैं ज्योतिषियों के वे सब स्थिर रहते हैं, वे यत्र तत्र भ्रमण नहीं करते ।