वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1779
From जैनकोष
हस्त्यश्वरथपादातवृषगंधर्वनर्तकि ।
सप्तानीकानि संत्यस्य प्रत्येक च महत्तरम्।। 1779।।
स्वर्गलोक में देवेंद्र की सप्तसेना का प्रतिपादन―सेना मायने समूह । पहिली सेना है हस्ती । हाथी के समूह अथवा हाथी और हाथी के चलाने वाले देव । इनके समूह का नाम हस्ती सेना है । ये हस्ती तिर्यंच जाति के नहीं हैं । स्वर्गों में तो देव हैं और स्थावर जीव हैं, और की संभावना नहीं है, जैसे कि नरक में भी नारकी हैं और स्थावर जीव हैं । नरक में तो देव भी विहार कर जाते हैं और स्वर्गों में तो नारकियों का विहार हो नहीं पाता, वहाँ तो देव मिलेंगे व स्थावर जीव मिलेंगे । तो यह देवों की ही ऐसी विक्रिया है कि वे अपना हाथी का रूप रख लेते हैं । जैसे यहाँ पर हाथी सेना अलग होती है इसी प्रकार वे भी अपनी हाथी सेना के रूप में अपना कर्मफल भोगते हैं । दूसरी सेना है घोड़ों की सेना, तीसरी है रथ सेना । ये देव अपनी जिंदगीभर बेकार ही तो हैं । न कोई रोजिगार करना पड़े, न कोई दूकान करना पड़े, न कोई काम करना पड़े । उनका जब सारा समय बेकार है तो बैठे-बैठे वे करें क्या? उनका कर्मफल इसी तरह से अनुभव में होता है । चौथी सेना है पयादे की सेना । जैसे यहाँ शस्त्र सज्जित सिपाही होते हैं इसी तरह शस्त्र सज्जित देव होते हैं वह है, पयादे की सेना । 5वीं सेना है वृषभ सेना । जैसे यहाँ के मनुष्य भी तो जान जानकर इच्छा कर करके कभी शेर का, कभी रीछ का व कभी किसी चीज का चित्रण बनाते है, कभी तो अपनी इच्छा से बनते हैं और कभी किसी दूसरे की आज्ञा से बनते हैं इसी प्रकार वे देव भी विक्रिया से कभी अपनी इच्छा से व कभी किसी दूसरे की आज्ञा से कभी कुछ बनते हैं, कभी कुछ बनते हैं । देखो किसी को सभी सुख नहीं मिलते । कुछ न कुछ दुःख की बात भी रहती है । उन देवों को सभी सुख मिले, पर साथ ही साथ दुःख की भी कुछ बातें हैं । स्वरूपदृष्टि से देखो तो सुख तो तब माना जाय जब कि जिस चीज की इच्छा हुई वह चीज तुरंत प्राप्त हो जाय, मगर ऐसा कभी भी नहीं हो सकता कि जिस काल इच्छा हुई उसी काल उस इच्छा की पूर्ति हो जाय । एक तो यह बात है कि जब किसी चीज की इच्छा होती है तो वह चीज नहीं प्राप्त होती, और जब वह चीज मौजूद है तब उस चीज की इच्छा नहीं होती । तो इच्छा के समय चीज नहीं और चीज के समय में उस प्रकार की इच्छा नहीं, तो सुख क्या? जब बहुत बढ़िया भोजन की चीजें भी सामने रखी हों तो उसके भी भीतर अनेक इच्छाएँ जगती रहती हैं । अब अमुक चीज खाना है, अब अमुक चीज खाना है? तो जिस समय इच्छा की उस समय वह चीज मुंह में नहीं है । तो सूक्ष्मदृष्टि से जिस जाति की इच्छा है उस जाति का साधन नहीं है और साधन है तो इच्छा नहीं इसलिए सुख कहीं है नहीं, फिर भी अपना कल्पना से अपने ढंग से जीव सुख मानता है । तो स्वर्गों में बताया है कि सुख के साधन बहुत हैं । छठी सेना है गंधर्व सेना । जैसे यहाँ भी बाजे रहते हैं सेना में भी, जिन बाजों के शब्दों को सुनकर लोगों का जोश बड़े, इसी प्रकार यह गंधर्व सेना तो अपना आनंद पाने के लिए भी वहाँ बनी हुई है । तो ये देवता लोग इंद्र के प्रसन्न किया करते हैं । क्यों प्रसन्न किया करते हैं? कुछ यद्यपि ऐसी अटक उनके खास नहीं है कि ये देव इंद्र को प्रसन्न करें, पर उनका कुछ कर्मफल ही ऐसा है कि वे स्वतंत्र भी नहीं रह सकते, वे उस इंद्र को खुश कर के ही खुश रहते हैं । तो वे देव देवियां नाना प्रकार के गीत गा गाकर इंद्र को प्रसन्न किया करते हैं । 7वीं सेना है नर्तकी सेना । नृत्य कला में प्रवीण देवांगनाएं होती हैं । वे इस बात में अपनी चतुराई और अपना भाग्य समझती हैं कि मेरी चेष्टा देखकर यह इंद्र प्रसन्न हो जाय । जैसे यहाँ अनेक लोग इस ही प्रयत्न में रहा करते हैं कि लोग मुझ पर खुश हो जायें । चाहे कोई चीज न चाहें । बड़े-बड़े लोग भी ऐसा चाहते हैं कि नगर के लोग सब मुझ से खुश हो जायें, तो कर्मफल इस ही रूप में वहाँ प्रकट होता है कि वे सभी देव देवियां इंद्र को प्रसन्न करने की मन में चाह रखते हैं । इंद्र प्रसन्न हो जाय तो उसमें वे अपना भाग्य समझते हैं । तो यह 7 प्रकार की सेना होती हैं । थे सभी सेनायें एक से एक बढ़कर हैं ।