वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2112
From जैनकोष
सर्वद्वंद्वविनिर्मुक्तं सर्वाभ्युदयभूषितम् ।
नित्योत्सवयुतं दिव्यं दिवि सौख्यं दिवौकसाम् ।।2112।।
स्वर्गों में नित्योत्सव की विशेषता―स्वर्गों में देवों का सुख सर्व प्रकार के द्वंद्वों से रहित है । कोई वहाँ छोटा नहीं, वहाँ अस्थिरता नहीं है, एकसी व्यवस्था है । इंद्र है, उसकी आज्ञा चलती है, वहाँ ऐसे देवों का जन्म होता है और उस ढंग में रहते हैं, उनके कोई अस्थिरता नहीं है, न वहाँ कोई झगड़ा झांसा की बात है । सब देव सुखी हैं । और वहाँ पर समस्त अम्युदय है, नित्य उत्सव वहाँ होते रहते हैं । आज किसी देव का जन्म हुआ उसका ही उत्सव चल रहा है, किसी दिन किसी बड़े दैव का जन्म हुआ, इंद्र का जन्म हुआ, बड़ा समारोह मनाया जा रहा है । वहाँ किसी के कोई बाल बच्चा नहीं पैदा होता । जैसे यहाँ मनुष्यों में कोई बच्चा पैदा होता है और उसका उत्सव मनाया जाता है जो कि एक मलिन भावों सहित उत्सव है, लेकिन यहाँ विशिष्ट पुण्यवान जीव आया है, कोई मुनि था, कोई श्रावक था, बड़ा धर्मपालन किया, उसके फल में यह जन्म हो रहा है, तो उसका उत्सव मनाने के लिए देव आते हैं । एक साधुता जानकर, सजातीयता जानकर बिना मोहभाव के शुभभावों से उत्सव समारोह मनाया करते हैं और साथ ही यह भी सोच सकते कि जो देव जन्म ले रहा है उसके पुण्यं की ऐसी प्रेरणा है कि देव आकर उसका उत्सव मनाते हैं । स्वर्गो में देव उत्सव किस विधि से मनाते हैं, किस विधि से उसका प्रयत्न रखते हैं, यह भी एक अलौकिक पद्धति हैं । देव जब जन्म लेता है तो अंतर्मुहूर्त में ही वह बड़ा पुष्ट और युवावस्था संपन्न होता है, और जन्म लेकर जब देखता है सोचता है―अरे मैं यहाँ कहाँ आ गया, ये कौन लोग खड़े हैं, बड़े असमंजस से, कैसा ये लोग टकटकी लगाये हमें देख रहे हैं, यह सब क्या है, इस प्रकार जब वह देव कुछ अचंभा करता है तो पास में खड़े हुए देव कहते हैं―महाराज ! आप बड़े पुण्य के कारण यहाँ पधारे हैं, आपका जन्म हुआ है, यह स्वर्ग है, ये देवता लोग खड़े हैं । ये सब आपका आदर करने के लिए इकट्ठा हैं और थोड़ी ही देर में अवधिज्ञान से वह सब कुछ जान भी जाता है । ऐसा वहां का सद्व्यवहार है ।