वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 2167
From जैनकोष
लोकपूरणमासाद्य करोति ध्यानवीर्यत: ।
आयु: समानि कर्माणि भुक्तिमानीय तत्क्षणे ।।2167।।
केवलिसमुद्धात से तीन अघातिया कर्मो की आयु की स्थिति के समान स्थिति―केवलीभगवान लोकपूरण में अपने प्रदेशों को सारे लोक में व्याप देते हैं । वे प्रभु न तो अब संज्ञी हैं, न असंज्ञी । उनके तो अब मनोबल भी नहीं है, अनंत ज्ञानबल है । मन से भी वे अब कुछ विचार नहीं करते हैं । उनके तो एक विशुद्ध आत्मशक्ति प्रकट हुई है जिस विकास से ही सीधा समस्त त्रिलोक और त्रिकालवर्ती पदार्थों को स्पष्ट जानते हैं । उस समय उस ध्यान के प्रताप से उदय में लाकर, भोग में लाकर अथवा यों ही एक समय में लाकर आयु के बराबर उन कर्मों को कर दिया जाता है । अब यहाँ इस प्रभु के चार अघातिया कर्म एक समान स्थिति के हो गए ।