वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 4
From जैनकोष
उवओगो दुबियप्पों दंसणं णाणं च दंसणं चदुधा ।
चक्खु अचक्खु ओही दंसणमध केवलं णेयं ।।4।।
अन्वय―उवओगोणे दुवियप्पों दंसणं च णाणं, दंसणं चदुधा णेयं चक्खु, अचक्खु, ओही अध केवलं दंसणं ।
अर्थ―उपयोग दो प्रकार का है―1-दर्शनोपयोग, 2-ज्ञानोपयोग । दर्शनोपयोग चार प्रकार का जानना चाहिये । 1-चक्षुर्दर्शन, 2-अचक्षुर्दर्शन, 3-अवधिर्दर्शन और 4-केवलदर्शन ।
प्रश्न 1―दर्शनोपयोग का शब्दार्थ क्या है ?
उत्तर―आत्मा में एक दर्शन गुण है, उस गुण के व्यक्त उपयोगात्मक परिणमन को दर्शनोपयोग कहते हैं । दर्शनोपयोग का दूसरा नाम अनाकारोपयोग भी है ।
प्रश्न 2―अनाकारोपयोग का भाव क्या है ?
उत्तर―जिस उपयोग के विषय में कोई आकार, विशेष, भेद, विकल्प न आवे, किंतु निराकार, सामान्य, अभेद, विकल्परहित जिसका विषय हो उसे अनाकारोपयोग कहते हैं ।
प्रश्न 3―चक्षुर्दर्शन किसे कहते हैं ?
उत्तर―चक्षुरिंद्रिय के निमित्त से जो ज्ञान उत्पन्न होता है उस ज्ञान की उत्पत्ति के लिये उस ज्ञान से पहिले जो आत्मा की ओर उपयोग होता है उसे चक्षुर्दर्शन कहते हैं । इसी प्रकार अचक्षुर्दर्शन में लगाना, केवल निमित्त में चक्षु को छोड़कर बाकी 4 इंद्रियां और मन को कहना ।
प्रश्न 4―क्या ज्ञान से पहिले दर्शन का होना आवश्यक है ?
उत्तर―मतिज्ञान से पहिले व अवधिज्ञान से पहिले दर्शन का होना आवश्यक है, केवलदर्शन केवलज्ञान के साथ-साथ होता है । कभी-कभी कोई मतिज्ञान पूर्वक भी होता है, उसके लिये पूर्व का दर्शन, दर्शन है ।
प्रश्न 5―मतिज्ञान व अवधिज्ञान से पहिले दर्शनोपयोग की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर―जब पूर्वज्ञानोपयोग तो छूट गया और नया ज्ञानोपयोग करना है तो बीच में आत्मा के अभिमुख होकर नये ज्ञान का बल प्रकट किया जाता है । जैसे पहिले घट को जान रहा था अब पट को जानना है तो घट ज्ञान छूटने पर जब तक पट को नहीं जाना उस बीच में दर्शनोपयोग होता है अर्थात् आत्मा यहाँ किसी वस्तु को जानता फिर आत्मा की ओर झुकता, फिर किसी वस्तु को जानता, फिर आत्मा की ओर झुकता, फिर जानता―यह क्रम चलता रहता है ।
प्रश्न 6―श्रुतज्ञान और मनःपर्ययज्ञान से पहिले दर्शन क्यों नहीं होता ?
उत्तर―ये दोनों ज्ञान पर्याय-विकल्प की मुख्यता करके जानते हैं और जो पर्याय-विकल्प की मुख्यता लेकर जानते हैं उन ज्ञानों से पहिले दर्शन नहीं होता । ये दोनों ज्ञान मतिज्ञानोपयोग के अनंतर होते हैं ।
प्रश्न 7―केवलज्ञान के साथ ही केवलदर्शन क्यों होता है ? वहाँ अन्य की भांति पहिले केवलदर्शन हो और पीछे केवलज्ञान हो, ऐसा क्यों नहीं होता ?
उत्तर―केवली भगवान के अनंतशक्ति प्रकट हो गई है, अत: ज्ञानोपयोग व दर्शनोपयोग दोनों साथ-साथ होते हैं । छद्मस्थ जीवों के अनंतशक्ति नहीं है, अत: साथ-साथ नहीं होते ।
प्रश्न 8―दर्शन और दर्शनोपयोग में क्या अंतर है ?
उत्तर―दर्शन तो आत्मा की शक्ति है और दर्शन गुण के विकास का नाम दर्शनोपयोग है । दर्शनशक्ति तो नित्य है और उसका परिणमन जो दर्शनोपयोग है वह उत्पाद व्यय स्वरूप है ।
प्रश्न 9―सम्यग्दर्शन और दर्शनोपयोग में क्या अंतर है ?
उत्तर―सम्यग्दर्शन तो श्रद्धा गुण की निर्मल पर्याय है और दर्शनोपयोग दर्शन गुण की पर्याय है ।
प्रश्न 10―दर्शन और श्रद्धा में क्या अंतर है ?
उत्तर―दर्शन तो अंतर्मुखचित्प्रतिभास का नाम है और श्रद्धा उसे कहते हैं जिसके होने पर प्रतीति, विश्वास अथवा पर्याय की समीचीनता होने लगे ।
प्रश्न 11―दर्शनोपयोग का सम्यग्दर्शन के साथ क्या कुछ भी संबंध नहीं है ?
उत्तर―दर्शनोपयोग का जो विषय है वह सामान्य-आत्मा है । यदि उस सामान्य आत्मा में अहं अर्थात् निजद्रव्य की प्रतीति करे तो सम्यग्दर्शन होता है । विषय में आया हुआ द्रव्य दोनों का विषय है, इतना मेल तो घटित होता है, किंतु दोनों पर्याय में पृथक्-पुथक् गुणों के परिणमन हैं, अतः स्वलक्षण की अपेक्षा संबंध नहीं है ।
प्रश्न―12 मिथ्यादृष्टि के दर्शनोपयोग क्या मिथ्या होता है ?
उत्तर―दर्शनोपयोग न मिथ्या होता है और न सम्यक् होता है । हां, यह अवश्य है कि मिथ्यादृष्टि दर्शनोपयोग के विषय का अनुभव नही करता, परंतु सम्यग्दृष्टि दर्शनोपयोग के विषय की प्रतीति करता है । यथार्थत: ज्ञान भी न सम्यक् है और न मिथ्या है । ज्ञान मिथ्यात्व व अनंतानुबंधी के उदय में उपचार से मिथ्या कहलाता है । परंतु दर्शनोपयोग में यह उपचार भी नहीं है, क्योंकि दर्शनोपयोग निराकार है ।
प्रश्न 13―अवधिदर्शनोपयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर―अवधिज्ञान से पहिले होने वाले अंतर्मुख चित्प्रतिभास को अवधिदर्शनोपयोग कहते हैं ।
प्रश्न 14―केवलदर्शनोपयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर―केवलज्ञान के साथ-साथ होने वाले अंतर्मुख चित्प्रतिभास को केवलदर्शन कहते हैं ।
प्रश्न 15―ये दर्शनोपयोग किस निमित्त को पाकर प्रकट होते हैं ?
उत्तर―चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण व अवधिदर्शनावरण के क्षयोपशम से तो क्रमश: चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन व अवधिदर्शन प्रकट होते हैं और केवलदर्शनावरण के क्षय से केवलदर्शन प्रकट होता है ।
प्रश्न 16―क्षयोपशम किसे कहते हैं ?
उत्तर―उदय में आने वाले सर्वघाती स्पर्द्धकों के उदयाभावी क्षय और आगामी उदय में आने वाले सर्वघाती स्पर्द्धकों के उपशम तथा देशघाती स्पर्द्धकों के उदय को क्षयोपशम कहते हैं ।
प्रश्न 17―दर्शनोपयोग के पाठ से हमें किस कर्त्तव्य की प्रेरणा लेनी चाहिये ?
उत्तर―दर्शनोपयोग का जो विषय है उसे हम ज्ञानोपयोग से ज्ञात करें और उसके ज्ञानोपयोग के स्थिर रहने का यत्न करें । इस उपाय में हमें सम्यक्त्व की प्राप्ति होगी । अब उपयोगाधिकार में वर्णित किये गये दो प्रकार के उपयोग में से दर्शनोपयोग का वर्णन करके ज्ञानोपयोग का वर्णन करते हैं