वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 120
From जैनकोष
एवं न विशेष: स्यादुंदररिपुहरिणशावकादीनाम् ।
नैवं भवति विशेषस्तेषां मूर्च्छा विशेषेण ।।120।।
ममत्वपरिणामों की विशेषता से बिलाव हरिण आदि जीवों के हिंसा में विशेषता―अब यहाँ कोई यह प्रश्न करता है कि जब अंतरंग ममत्व का ही नाम परिग्रह है और अंतरंग परिणाम से ही हिंसा होती है तो बाहर में कोई कैसी भी हिंसा करे वे सब समान हो गई । चाहे बिल्ली ने चूहा पकड़कर खाये और चाहे हिरण के बच्चे ने घास खाया, इनमें कुछ फर्क तो न डालना चाहिए । रही भीतर की बात तो भीतर में जो होता हो, हो । ऐसी कोई शंका करे तो उत्तर में आचार्यदेव कहते हैं कि यह तर्क ठीक नहीं है, जब कि उन दोनों की भोजन की मूर्छा में फर्क है । याने बिल्ली भी अपना खाद्य खाती है, चूहा आदिक शिकार करती है वह पेट भी भरती है, हिरन का बच्चा भी घास से अपना पेट भरता है, तो दोनों ने अपना पेट ही तो भरा, यह बराबर की बात है । लेकिन उस बिल्ली के पेट भरने में विशेष मूर्छा है अगर हिरण का बच्चा उस घास से अपना पेट भरने में उतनी तीव्र मूर्छा नहीं रखता ꠰ इसी बात को और भी बतला रहे हैं ।