वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 56
From जैनकोष
कस्यापि दिशति हिंसा हिंसाफलमेकमेव फलकाले ।
अन्यस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसाफलं विपुलम् ।।56।।
आशयवश हिंसा से हिंसाफल के परिणाम में भेद―चूंकि हिंसा परिणाम से ही होती है, दूसरे पदार्थ से नहीं होती तो यह हिंसा का फल परिणाम पर लगाया जायेगा ꠰ किसी पुरुष को तो हिंसा के उदयकाल में एक ही हिंसा के फल को देता है और किसी पुरुष को वही हिंसा बहुत हिंसा के फल को देता है । किसी का परिणाम तो भला है और यत्न भी अच्छा कर रहा है और हो जाये किसी की हिंसा तो उससे हिंसा का फल नहीं है । जैसे कोई मक्खी या मकड़ी पानी या घी वगैरह में पड़ जाये और दया करके हम निकाल रहे हैं, कदाचित् वह मर भी जाये तो उसमें हिंसा का दोष नहीं है क्योंकि परिणाम की बात है । परिणाम में उस समय हमारे हिंसा का भाव नहीं है और किसी की हिंसा हिंसा के फल को देती है । इसी को और खुलासा करते हैं ।