वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 92
From जैनकोष
स्वक्षेयकालभावैः सदपि हि यस्मिन्निषिध्यते वस्तु ।
तत्प्रथममसत्यं स्यान्नास्ति यथा देवदत्तोऽत्र ꠰꠰92।।
सन्निषेधनामक असत्य वचन―जो पदार्थ अपने द्रव्य क्षेत्र काल भाव से विद्यमान है उसका निषेध किया जाये कि नहीं हैं वह असत्य है । जैसे किसी से पूछें कि भाई घर में देवदत्त है क्या? है तो लेकिन कोई कह दे कि देवदत्त नहीं है, यह असत्य हो गया । इसको क्या ज्यादा समझना । लोक में इन सब असत्यों का खूब भली प्रकार प्रचार है । जो पदार्थ है उस पदार्थ में न कर देना, यह प्रथम असत्य है । देखिये प्रमाद कषाय के संबंध वाली बात है यह । यहां अनेक बातें युक्तियों से सोच सकते हैं कि जिनका अभिप्राय अच्छा है और कदाचित् है को न करना पड़े तो अभिप्राय अच्छा होने से उसमें असत्य का दोष न होगा या पद माफिक कम दोष होगा ꠰ जैसे एक घटना बहुत प्रसिद्ध कही जाती है कि कोई शिकारी किसी गाय को वध करने के लिये ले जा रहा था, गाय उसके हाथ से छूट गई और गाय ने बहुत वेग से दौड़ लगाई । गाय बहुत दूर निकल गयी । वह शिकारी पीछा किए दौड़ा जा रहा था कोई एक श्रावक रास्ते में बैठा था, उससे शिकारी ने पूछा कि यहां से कोई गाय निकली है ? तो श्रावक पहिचान गया, उसके हाथ में छुरी थी, उसके कटाक्ष बुरे थे । उसका आशय जानकर वह श्रावक बोल गया कि यहाँ से तो नहीं निकली । देखिये हैं को न कहा, मगर उसके आशय को तो सोचिये । इसी प्रकार की और भी बातें हैं कि है को न कहने पर भी झूठ का कम दोष लगता होगा । बच्चे लोग खूब पैसा मांगते हैं पर जेब में पैसा पड़े होने पर भी कह देते हैं कि नहीं हैं पैसा तो इसमें कोई आशय बुरा नहीं है, इस कारण झूठ का कम दोष लगता होगा । कोई आपसे दो हजार रुपया उधार मांगे पर आप कह दें कि इस समय हमारे पास रुपया नहीं है, अरे है क्यों नहीं? 40-50 हजार तो जमा हैं पर आपका चूंकि यह अभिप्राय है कि हमें देना नहीं है क्योंकि इससे वापिस न आयेंगे तो आप झूठ बोल देते हैं, पर इसमें ज्यादा झूठ बोलने के दोष वाली बात नहीं है । झूठ का दोष कम लगे, ज्यादा लगे, यह बात एक आशय पर निर्भर है ꠰ कुछ लोग झूठ बोलने का परिणाम न होते हुए भी झूठ बोलते हैं । कोई बाबूजी अपने घर में बैठे हुए देख रहे थे कि घर के सामने से कोई सेठ आ रहा है, उसका इन बाबूजी पर कुछ कर्ज था बाबू जी तो घर के भीतर चले गए और अपने बच्चे से कह दिया कि अगर कोई हमें पूछे तो कह देना कि बाबू जी यहां नहीं हैं, बाहर गए ꠰ जब सेठ ने उस बच्चे से आकर पूछा कि बाबू जी कहां है तो वह लड़का उत्तर देता है कि बाबू जी यहाँ नहीं हैं, बाहर गए । तो सेठ ने फिर पूछा―अरे तो बाहर कहां गए ? तो लड़का कहता है अच्छा ठहरो, मैं अभी बाबू जी से पूछकर आता हूँ और इसका भी उत्तर देता हूँ । उसे पता ही नहीं कि यह झूठ बोलना कहलाता है वह तो आज्ञाकारी था, आज्ञा मानता जा रहा था तो पाप के प्रकरण में परिणामों की बात देखना चाहिये । कभी कोई बच्चा छत पर खेलता हो और छत की मुड़ेर पर चलता हो या बहुत ऊँचा उठकर बाहर निरखता हो तो वहां तो उस बच्चे के बाहर गिरने की संभावना है ना, तब मां को गुस्सा आता है और कहती है नास का मिटा, होते ही न मर गया, कई बातें बोलती है क्योंकि वह मरने के तो उपाय बना रहा है, सो ऐसा बोलकर भी मां के चित्त में उस बच्चे के मरने का परिणाम है क्या? प्रेम ही है । प्रेम के कारण वह ऐसा बोल रही है । तो सर्वत्र परिणामों की प्रमुखता है । यह पहिला असत्य है कि चीज तो है और उसका निषेध किया जा रहा हो । अब दूसरा असत्य सुनिये ।