वर्णीजी-प्रवचन:पुरुषार्थसिद्धिउपाय - श्लोक 99
From जैनकोष
सर्वस्मिन्नप्यस्मिन् प्रमत्तयोगैकहेतुकथनं यत् ।
अनृतवचनेऽपि तस्मान्नियतं हिंसा समवतरति ꠰꠰99।꠰꠰
असत्यवचन में हिंसा का दोष―अहिंसा तो धर्म है और हिंसा अधर्म है । हिंसा 5 तरह की होती है―हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह । हिंसा तो हिंसा है ही, झूठ बोलना हिंसा है क्योंकि इन सभी प्रकार के वचनों में जो कि झूठ बताये गये हैं―हैं को न करना, न को है करना, निंद्यनीय अप्रिय वचन बोलना, इन सब वचनों में हिंसा क्यों है कि प्रमादसहित योग है उनमें, अर्थात् कषाय से झूठ बोला जाता है । कषायभाव न तो झूठ कौन बोले? कषाय भाव होने के कारण चूंकि झूठ बोला जाता है इस कारण से असत्य वचन में भी हिंसा ही समझना चाहिये और असत्य वचन बोलकर हिंसा किसकी हुई? असत्य बोलने वाले की । दूसरे के प्राण दुखे अथवा न दुखे यह आगे की बात है, पर असत्य बोलने वाले तो अपने आपकी हिंसा कर ही ली, क्योंकि प्रमादभाव होने से उसके हिंसा है ही? हिंसा क्या? आत्मा का जो चैतन्यस्वरूप है विशुद्ध ज्ञानानंद, उसका घात हुआ, यह उसकी हिंसा हुई?