वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 132
From जैनकोष
दसविहपाणाहारो अणंतभवसायरे भमंतेण ꠰
भोयसुहकारणट्ठं कदो य तिविहेण सयलजीवाणं ।।132।।
(525) मोह में अज्ञान में अनंत भवसागर में भ्रमते हुए जीवों की भोगसुखनिमित्त दशविध प्राणाहार प्रवृत्ति―हे जीव अनंत भावसागर में भ्रमण करते हुए तू ने भोगसुख के निमित्त मन, वचन, काय से समस्त जीवों के 10 प्राणों का आहार किया है याने जो दूसरे जीव का वध करे, खाये तो उसने कितने के प्राणों को अपने मुख में कबलित किया है । ये दशायें पायी है संसार में भ्रमण करते हुए में । यह जीव अनादिकाल से अनंत भव धारण कर चुका । वहाँ क्या किया? दूसरे का आहार बना डाला । जैसे लोग कहते हैं कि ये जीव खाने के लिए ही तो बनाये गए हैं । जो अज्ञानी मोही जीव हैं मांसलोलुपी वे इतना तक कह डालते हैं, और फिर उनसे पूछो कि मनुष्य किस लिए बनाये गए? तो वे कहते हैं कि मौज के लिए, सबको खाने के लिए । उनकी दृष्टि यह नहीं कि जीव वे होते हैं जिनके दर्शन, ज्ञान प्राण हो । और वह सब जीवों में समान है यह ज्ञान न होने से 10 प्रकार के प्राणों का आहार किया और अनंत संसार सागर में भ्रमण किया । यह सब कुछ किया भोगसुख के लिए । और नारकियों का शरीर तो किसी के खाने के काम आता ही नहीं । उनका वैक्रियक शरीर है, अब खाने को जो मिले सो ले आयेंगे कौन? तिर्यंच । कोई देश ऐसे भी हैं कि जो मनुष्यों को मार कर खा जाते । कोई अकाल की जैसे कठिन परिस्थिति आये तो यह बात हो भी सकती है । और पशु पक्षी, इनका तो मारना लोग अत्यंत सुगम समझते हैं, इसी के फल में संसार में अब तक जन्म मरण पाता रहा । अब समझ लीजिए कि गोभी का फूल कोई खाये तो उसमें साक्षात् मांस का दोष है अतिचार नहीं, साक्षात् मांस का दोष है । अतिचार तो उसमें बताया कि जैसे मानो आटे की म्याद 5 दिन की है और खा ले 10 दिन का तो उसको कहते कि अतिचार का दोष लग गया । पर गोभी के फूल में भक्षण का अतिचार नहीं, साक्षात् मांस भक्षण का दोष है । उसमें छोटे बड़े सभी प्रकार के कीड़े बहुत हैं । उनको विचारने में, उनको पतेली में पकाने में, छौंकने में बड़े दोष हैं । वहाँ यों समझ लो एक मांस का कलेवर साथ है । इससे यह जाने कि गोभी का फूल मांस की तरह, अंडे की तरह का भोजन है ꠰ जैसे वे चीजें अयोग्य हैं ऐसे ही गोभी का फूल भी अयोग्य चीज है ꠰ सो दशविध प्राणघात से इस जीव ने अनंत संसार में भ्रमण किया ꠰