वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-27
From जैनकोष
भेदादणु: ।। 5-27 ।।
अणु की निष्पत्ति का विधान―अणु भेद से ही उत्पन्न होता है । इस सूत्र में केवल 2 पद हैं―भेदात् और अणु: । जिसका सीधा अर्थ है भेद से अणु होता है, किंतु स्कंधों की उत्पत्ति बताने के बाद इस सूत्र में अवधारण होता है अर्थात अणु भेद से ही होता है । ऐसे अनेक प्रयोग होते है जिसमें एव तो नहीं लगा रहता, पर उसका अर्थ निकलता है । जैसे किसी के विषय में कहा जाये कि यह तो पानी खाता है तो उसका अर्थ यह निकलता कि पानी के सिवाय और कुछ खाता ही नहीं है । सो ऊपर सूत्र में कहा गया कि भेद और संघात से ये सब उत्पन्न होते हैं । तो प्रकरणवश तो अणु और स्कंध सबके लिए बात आई थी । पूर्व सूत्र में, फिर यहाँ अणु की उत्पत्ति बताने का अर्थ ही यह है कि अवधारण करता है कि अणु भेद से ही होता है । इससे पहले जो सूत्र कहा गया था, जिसमें वर्णन बताया गया स्कंधों का और सूत्र जिस सिलसिले से कहा गया है उसके माफिक तो दोनों ही आते हैं । भेद, भेदसंघात और संघात से अणु और स्कंध हुआ करते हैं । अब उसमें जिस तरह जो होता हो उस तरह लगा लिया जाता है । तो जब भेद की बात वहाँ आ गई तो भेद कहना एक अवधारण सिद्ध करता है । और इस ही अवधारण के कारण पूर्व सूत्र में स्कंधों का ही वर्णन है । ऐसा फलितार्थ निकलता है । परमाणु भेद से ही उत्पन्न होता है । न तो भेद संघात से होगा और न संघात से होगा । परमाणु एक प्रदेशी होता है । किसी स्कंध का भेद करके संघात किया जाये उससे अणु हो ही नहीं सकता । अथवा कुछ और मिलता और उससे अणु हो ही नहीं सकता या स्कंधों का भेद होने पर भी अनेक परमाणुओं का स्कंध रहे दोनों तो भी अणु नहीं बना । ऐसा भेद हुआ जिससे एक प्रदेशी अणु अलग हो जाये तो ऐसे भेद से अणु उत्पन्न होता है । अब यहाँ एक जिज्ञासा होती है कि उत्पत्ति बताने वाले सूत्र में संघात शब्द से ही स्कंध की सिद्धि हो जाती है तो फिर वहाँ भेद संघात ग्रहण करना अनर्थक रहा । तो उस भेदपूर्वक संघात का जो ग्रहण किया गया उसका प्रयोजन बताने के लिए अब सूत्र कहते हैं ।