वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 6-21
From जैनकोष
सम्यक्त्वं च ।।6-21।।
(82) सम्यक्त्व होते संते संभावित आयुबंध का विवरण―सूत्र का अर्थ है―सम्यक्त्व भी देवायु के आस्रव का कारण है । इसका भाव यह समझना कि सम्यक्त्व तो देवायु के आस्रव का कारण नहीं, वह तो मोक्ष का मार्गरूप है, पर सम्यक्त्व के होते संते राग परिणाम के कारण, शुभानुराग के कारण आयु बंधती है तो देवायु बंधती है, इससे भी यह जानना कि यह मनुष्य की अपेक्षा कथन चल रहा है । तिर्यंच भी ग्रहण कर सकते, सम्यक्त्व के होने पर मतुष्य या तिर्यंचों मे आयु बंधती तो देवायु, मगर नारक और देव में रहने वाले सम्यग्दृष्टि को आयु बंधती है मनुष्यायु । यहां पृथक् सूत्र दिया है, उससे यह ज्ञात होता कि सम्यक्त्व होने पर जो आयु बंधेगी तो सौधर्म आदिक स्वर्गवासी देवों के बँधेगी और इस सूत्र से यह भी सिद्ध होता कि पहले जो सरागसंयम और संयमासंयम देवायु के कारण बताये थे सो वे इन वैमानिकों की आयू के आस्रव के कारण हैं । सम्यक्त्व होने पर भवनवासी आदिक देवों में उत्पन्न नहीं हो सकते हैं । अब आयुकर्म के अनंतर नामकर्म का निर्दश है । तो नामकर्म के आस्रव कौन हैं, यह जानने के लिए चूंकि नामकर्म के दो प्रकार हैं―(1) अशुभ नामकर्म और (2) शुभ नामकर्म तो उनमें अशुभ नामकर्म के आस्रव की जानकारी के लिए सूत्र कहते है―