वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-5
From जैनकोष
क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पंच ।।7-5।।
(126) सत्यव्रत की पांच भावनावों का निर्देशन―सत्य व्रत की 5 भावनायें इस प्रकार है―(1) क्रोधप्रत्याख्यान, (2) लोभप्रत्याख्यान, (3) भीरुत्वप्रत्याख्यान, (4) हास्यप्रत्याख्यान और ( 5) अनुवीचिभाषण । क्रोधभाव का त्याग करना क्रोधप्रत्याख्यान है । जो पुरुष क्रोध से आवृत रखता है, क्रोध किया करता है क्योंकि क्रोध एक ऐसा नशा है कि जिसमें वह सत्पथ भी भूल जाता है और उस क्रोध में जैसा वह बिगाड़ चाहता है किसी का उस बिगाड़ के उपायों का मनन भी साथ चलता है इस कारण क्रोध करना सत्य व्रत को भंग कर देता है । सो सत्य व्रत की रक्षा करने वालों को क्रोध का त्याग करना चाहिए । लोभ प्रत्याख्यान―लोभ कषाय का त्याग करना लोभप्रत्याख्यान है । किसी भी बाह्य पदार्थों के लोभ में अथवा अपने आपके पर्याय की प्रसिद्धि आदिक के लोभ में ऐसा यह भाव उत्सुक होता है और उस लोभ संगति में बढ़ता है कि वह असत्य वचनों का प्रयोग करके भी लुभायें गए पदार्थों का संग्रह करना चाहता है । तो जो पुरुष लोभ रखता है उसका झूठ बोलना बहुत कुछ संभव है इस कारण सत्य व्रत की रक्षा करने के लिए लोभ परित्याग की भावना करना चाहिए । भीरुत्वप्रत्याख्यान याने डरपोकपने का त्याग कर देना, जो मनुष्य कायर होता है, जरा-जरासी घटनाओं में भयभीत होकर कायर बनता है तो वह अपनी कल्पित रक्षा के लिए किसी भी असत्य साधन का प्रयोग कर सकता है, असत्य बोल सकता है । तो सत्य व्रत की रक्षा करने के लिए ऐसा ज्ञानबल बढ़ना चाहिए कि जिससे कायरता न रह सके । हास्यप्रत्याख्यान―हंसी का त्याग करना हास्यप्रत्याख्यान है । जो पुरुष दूसरों का उपहास करता है तो उस मजाक करने की प्रवृत्ति में अनेक बार असत्य बोलने के प्रसंग हो जाते हैं, अत: सत्य व्रत की रक्षा करने वाले को हास्य का परित्याग करना चाहिए । अनुवीचिभाषण―आगम के अनुकूल वचन बोलना अनुवीचिभाषण है । यहाँ शंकाकार कह सकता है कि फिर तो अशुभ क्रियावों वाले वचनों से भी बोलना अनुवीचिभाषण में आ जायेगा, उत्तर देते हैं कि नहीं । आगम के अनुसार बोलने का यहाँ भाव है कि व्रत आदिक शुभ प्रवृत्तियों के बारे में आगम के अनुसार बोलना, क्योंकि यह प्रकरण पुण्यास्रव का है । अप्रशस्त क्रियावों के बारे में अनुवीचिभाषण का अधिकार नहीं है अथवा अनुवीचिभाषण का अर्थ कीजिए―विचार करके भाषण देना, बिना विचारे जो शीघ्र भाषण कर देते हैं उनके असत्य बोलने के प्रकरण बन जाया करते हैं अत: सत्यव्रत की रक्षा करने के लिए अनुवीचिभाषण करना चाहिए । ये सत्यव्रत की 5 भावनायें हैं । अब तृतीय व्रत की भावनायें बताते हैं ।