वर्णीजी-प्रवचन:रयणसार - गाथा 28
From जैनकोष
जंतं-मंतं-तंतं परिचरियं पक्खवायपियवयणं।
पडुच्च पंचमयाले भरहे दाणं ण किं पि मोक्खस्स।।28।।
यंत्र के आश्रय से दिये गये दान के मोक्ष हेतुत्व का अभाव―इस भारत देश में पंचमकाल में जो जंत्र मंत्र सेवा, पक्षपात प्रिय वचन के सहारे विश्वास उत्पन्न कर दान दिया जाता है वह मोक्ष का कारण नहीं है। कोई मंत्र लिखकर देता हो और खास कर त्यागी साधु व्रती यदि यंत्र लिखकर बाँटता हो तो उस पर लोगों का बहुत आकर्षण होता है, और उस सहारे कितने ही दान हो जाया करते हैं तो ऐसा दान मोक्ष का हेतुभूत नहीं है। जो यंत्र लिखकर देता है यह ही जिसका व्यसन बना है प्रथम तो वह ही मोक्ष मार्ग से दूर है और वह श्रावक गृहस्थ जो यंत्र पर आशक्त हैं उनको अपनी निधि पर विश्वास नहीं। जो किए गए कर्म हैं, बद्धकर्म हैं वे उदय में आते हैं और फल मिलता है, उसको यंत्र न टाल सकेंगे, दूसरे पुरुष न टाल सकेंगे। वह खुद के ही परिणामों में उच्चता हुई, निर्मलता हुई, अविकार आत्मस्वरूप की सुध हुई और वहाँ ही ध्यान में रमे है, पूर्वबद्ध कर्मों में भी फर्क डाल जाता है मगर उसे कोई दूसरा नहीं डालता, इस तथ्य को न जानकर दयापात्र गृहस्थ अज्ञानवश यंत्र पर ही एक आशक्त रहता है और उससे बड़ी पूजा प्रतिष्ठा बढ़ाता है। सो यंत्र के आश्रय से दिया हुआ दान यह मोक्ष का हेतुभूत नहीं है। वह तो एक प्रकार से अपने गृहस्थ के ही विकृत कार्यों को करने का उपाय समझ रखा है। मंत्र के आश्रय से दिये गये दान के मोक्ष हेतुत्व का अभाव―इसी प्रकार मंत्र का तमाशा बन गया है जो अनेक प्रकार के लोगों को मंत्र देते बाँटते हैं या जिसकी प्रसिद्धि हो गई कि यह महाराज मंत्र देते हैं उससे हमारे सब काम सिद्ध हो जाते हैं तो मंत्र के ही आलंबन से उस पर आकर्षण होता है और उससे फिर जो कुछ भी किया गया दान है वह मोक्ष का हेतुभूत नहीं है। ये सब बातें आजकल 47 मुख्यतया चल रही हैं, और लोग भी प्रायः इस ही तमाशे के रुचियाँ हैं इस कारण अगर यंत्र मंत्र का कोई तमाशा करने लगे तो उसके पास भीड़ भी एकत्रित होती है। उनके बड़े-बड़े आख्यान भी प्रसिद्ध किए जाते हैं। तो वे यंत्र मंत्र के प्रसार और यंत्र मंत्र पर विश्वास रखकर दान दिया यह ही जिसका एक व्यसन अथवा प्रकृति बन गई है वे दोनों ही मोक्ष के मार्ग में नहीं है संसार के संकटों से छूटने का मार्ग तो यह है जो अपने आप के बारे में यह परिचय हो जाये कि यह मैं आत्मा स्वरूपतः अपने ही स्वरूप मात्र हूँ, इसको बाह्य से बंधन क्या? सत्त्व बंधन को स्वीकार नहीं करता, किंतु ऐसा ही उनको योग है, उपाधि इनके साथ है। उसके विपाक का प्रतिफलन उपयोग में होता है और यह जीव ज्ञानस्वरूप ढक जाने के कारण इस ज्ञान का कल्पनारूप परिणमन बनाता है, उससे यह सारा उपद्रव चलता है। अनेक लोग यंत्र पर विश्वास रखते हैं। यंत्र के आश्रय से दिये गये दान के मोक्ष हेतुत्व का अभाव―यंत्र तो कहलाता है कोई आकार बनाकर देना, मंत्र है अक्षरों का जाप और तंत्र है कोई टोटिका जैसा काम। यह लोगों को विदित हो कि अमुक महाराज तंत्र भी जानते हैं और उनके तंत्र से हमारे सब काम पूरे बनेंगे, सो उस तंत्र को आलंबन लेकर उस ही चमत्कार पर आशक्त होकर जो दान किया जाता है वह दान मोक्ष का हेतुभूत नहीं है। यद्यपि कुछ निमित्त नैमित्तिक बात तो है, ये यंत्र मंत्र तंत्र किसी कार्य में एक साधन बनते हैं, मगर जिसका कार्य बनना हो उसके हो पुण्य का उदय, यह प्रथम बात है, तो वह उसका एक सामान्य आश्रय भी बन जाता है अन्यथा अनेक यंत्र मंत्र तंत्र फेल रहते हैं, कोई कार्य में सिद्धि नहीं होती, तो उसमें भी मुख्य अपना-अपना भाव ही रहा। श्रद्धा है, भाव है, सरलता है, निर्मलता है, पुण्य का उदय है तो कार्य होता है अन्यथा बतलाओ कि अन्य विदेश के लोग जो यंत्र मंत्र में विश्वास नहीं रखते वे लौकिक सुखों से कैसे सुखी हो गए? इस भारत देश से तो वे बड़े-बड़े धनिक पड़े हुए हैं, और वे कोई यंत्र मंत्र तंत्र के विश्वासी भी नहीं हैं। तो यहाँ बात बतला रहे हैं कि अपनी विधि पर, अपनी करतूत पर विश्वास न रखने वाले अज्ञानी पुरुष जब कोई दान करता है तो बस इसी यंत्र मंत्र तंत्र का, इसी चमत्कार का आकर्षण पाकर करता है। सो वह अज्ञप्राणी है, तथ्य का अजानकार है इसलिए उसका दान मोक्ष का कारणभूत नहीं है। कर्मविपाक के परिचय में संतोषमार्ग―इसी तरह सेवा उपचार से जो विश्वास प्राप्त कर अनेक लोग दान करते हैं वह भी उनके लिए मोक्ष का हेतुभूत नहीं है। अथवा दूसरे के बहुत प्रिय वचन सुनकर उससे ही भावुक बनकर, उससे ही आकर्षित होकर केवल अपनी कीर्ति का भाव रखकर दान करते हैं वह भी मोक्ष का हेतुभूत नहीं है। इन सब बातों पर दृष्टि डालकर देखो तो विरला ही ज्ञानी पुरुष तत्त्व का जानकार सद्बुद्धि से दान करता है तो प्रायः अज्ञानी जन इसी बात का आलंबन लेकर त्याग करते हैं। वह त्याग आत्मदृष्टि से संबंध न रखने के कारण मोक्ष का हेतुभूत नहीं है।