विचित्र
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
न्यायविनिश्चय/ वृ./1/8/148/47 तद्विपरीतं विचित्रं–क्षणक्षयविषयत्वं प्रत्यक्षस्य।
न्यायविनिश्चय/ वृ./1/8/157/19 तद्विशिनष्टि विचित्रं शबलं सामान्यस्य विशेषात्मकं विशेषस्य सामान्यात्मकमिति। = उस (चित्र) से विपरीत विचित्र है। प्रत्यक्षज्ञान क्षणक्षयी विषय इसका अर्थ है। विचित्र शबल अर्थात् सामान्य का विशेषात्मक रूप और विशेष का सामान्यात्मकरूप।
पुराणकोष से
(1) कुरुवंशी एक नृप । यह राजा चित्र का उत्तराधिकारी था । हरिवंशपुराण - 45.27
(2) कुरुवंशी राजा । यह राजा वीर्य का उत्तराधिकारी था । हरिवंशपुराण - 45.27
(3) राजा धृतराष्ट्र और गांधारी का बाईसवाँ पुत्र । पांडवपुराण 8.195
(4) नील पर्वत की दक्षिण-दिशा में सीता नदी के पूर्व तट पर स्थित एक कूट । इसका योजन एक हजार योजन है । हरिवंशपुराण - 5.191