वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी
From जैनकोष
(राग मलार)
वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी ।।टेक ।।
साधु दिगम्बर नगन निरम्बर, संवर भूषणधारी ।।वे मुनि. ।।
कंचन-काच बराबर जिनकैं, ज्यौं रिपु त्यौं हितकारी ।
महल-मसान मरन अरु जीवन, सम गरिमा अरु गारी ।।१ ।।वे मुनि. ।।
सम्यग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी ।
सेवत जीव सुवर्ण सदा जै, काय-कारिमा टारी ।।२ ।।वे मुनि. ।।
जोरि जुगल कर `भूधर' बिनवै, तिन पद ढोक हमारी ।
भाग उदय दरसन जब पाऊँ, ता दिनकी बलिहारी ।।३ ।।वे मुनि. ।।