शीलपाहुड गाथा 11
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि पुरुष को इसप्रकार निर्वाण होता है -
णाणेण दंसणेण य तवेण चरिएण सम्मसहिएण ।
होहदि परिणिव्वाणं जीवाण चरित्तसुद्धाणं ।।११।।
ज्ञानेन दर्शनेन च तपसा चारित्रेण सम्यक्त्वसहितेन ।
भविष्यति परिनिर्वाणं जीवानां चारित्रशुद्धानाम् ।।११।।
जब ज्ञान, दर्शन, चरण, तप सम्यक्त्व से संयुक्त हो।
तब आतमा चारित्र से प्राप्ति करे निर्वाण की ।।११ ।।
अर्थ - ज्ञान दर्शन तप इनका सम्यक्त्व भावसहित आचरण हो तब चारित्र से शुद्ध जीवों को निर्वाण की प्राप्ति होती है ।
भावार्थ - सम्यक्त्व सहित ज्ञान दर्शन तप का आचरण करे तब चारित्र शुद्ध होकर रागद्वेषभ ाव मिट जावे तब निर्वाण होता है, यह मार्ग है ।।११।। (तप=शुद्धोपयोगरूप मुनिपना, यह हो तो २२ प्रकार व्यवहार के भेद हैं ।)