शीलपाहुड गाथा 18
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जिनके शील है सुशील हैं उनका मनुष्यभव में जीना सफल है अच्छा है -
सव्वे वि य परिहीणा रूवणिरूवा वि पडिदसुवया वि ।
सीलं जेसु सुसीलं सुजीविदं माणुसं तेसिं ।।१८।।
सर्वेsपि च परिहीना: रूपविरूपा अपि पतितसुवयसोsसि ।
शीलं येषु सुशीलं संजीविदं मानुष्यं तेषाम् ।।१८।।
हों हीन कुल सुन्दर न हों सब प्राणियों से हीन हों ।
हों वृद्ध किन्तु सुशील हों नरभव उन्हीं का सफल है ।।१८ ।।
अर्थ - जो सब प्राणियों में हीन हैं, कुलादिक से न्यून हैं और रूप से विरूप हैं, सुन्दर नहीं हैं, `पतितसुवयस:' अर्थात् अवस्था से सुन्दर नहीं है, वृद्ध हो गये हैं, परन्तु जिनमें शील सुशील है, स्वभाव उत्तम है, कषायादिक की तीव्र आसक्तता नहीं है उनका मनुष्यपना सुजीवित है, जीना अच्छा है ।
भावार्थ - लोक में सब सामग्री से जो न्यून हैं, परन्तु स्वभाव उत्तम है, विषय-कषायों में आसक्त नहीं हैं तो वे उत्तम ही हैं, उनका मनुष्यभव सफल है, उनका जीवन प्रशंसा के योग्य है ।।१८।।