शीलपाहुड गाथा 6
From जैनकोष
आगे इसीलिए कहते हैं कि ऐसा करके थोड़ा भी करे तो बड़ा फल होता है -
णाणं चरित्तसुद्धं लिंगग्गहणं च दंसणविसुद्धं ।
संजमसहिदो य तवो थोओ वि महाफलो होइ ।।६।।
ज्ञान चारित्रशुद्धं लिंगग्रहणं च दर्शनविशुद्धम् ।
संयमसहितं च तप: स्तोकमपि महाफलं भवति ।।६।।
दर्शन सहित हो वेश चारित्र शुद्ध सम्यग्ज्ञान हो ।
संयम सहित तप अल्प भी हो तदपि सुफल महान हो ।।६।।
अर्थ - ज्ञान तो चारित्र से शुद्ध और लिंग का ग्रहण दर्शन से शुद्ध तथा संयम सहित तप ऐसे थोड़ा भी आचरण करे तो महाफलरूप होता है ।
भावार्थ - ज्ञान थोड़ा भी हो और आचरण शुद्ध करे तो बड़ा फल हो और यथार्थ श्रद्धापूर्वक भेष ले तो बड़ा फल करे जैसे सम्यग्दर्शनसहित श्रावक ही हो तो श्रेष्ठ और उसके बिना मुनि का भेष भी श्रेष्ठ नहीं है, इन्द्रियसंयम प्राणीसंयम सहित उपवासादिक तप थोड़ा भी करे तो बड़ा फल होता है और विषयाभिलाष तथा दयारहित बड़े कष्ट सहित तप करे तो भी फल नहीं होता है, ऐसे जानना ।।६।।