सप्तसप्तमतप
From जैनकोष
एक प्रकार का तप इसमें पहले दिन उपवास और इसके बाद एक-एक ग्रास बढ़ाते हुए आठवें दिन सात ग्रास आहार लेने के पश्चात् इसके विपरीत एक-एक ग्रास घटाते हुए अंतिम सोलहवें दिन उपवास किया जाता है । यह क्रिया इस तप में सात बार की जाती है । हरिवंशपुराण - 34.91