असुर: Difference between revisions
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<li class="HindiText" id="4"><strong>सुरों के साथ युद्ध करने के कारण असुर कहना मिथ्या है</strong></span> <br /> | <li class="HindiText" id="4"><strong>सुरों के साथ युद्ध करने के कारण असुर कहना मिथ्या है</strong></span> <br /> | ||
<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 4/10/4/216/7 </span><span class="SanskritText">स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यन्ति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ॥6॥ ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।</span> | <span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 4/10/4/216/7 </span><span class="SanskritText">स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यन्ति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ॥6॥ ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते।</span> | ||
<span class="HindiText">= `देवों के साथ असुर का युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवों का अवर्णवाद मिथ्यात्व के कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गो के देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानों में रहने वाले उनके साथ वैर की कोई संभावना नहीं है। निकृष्ट | <span class="HindiText">= `देवों के साथ असुर का युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवों का अवर्णवाद मिथ्यात्व के कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गो के देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानों में रहने वाले उनके साथ वैर की कोई संभावना नहीं है। निकृष्ट बल वाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्प प्रभाव वाले असुरों से युद्ध की कल्पना ही व्यर्थ है।</span> | ||
<p><span class="HindiText">• असुरकुमार देवों के इंद्रादि व उनका अवस्थान - देखें [[ भवन#2 | भवन - 2]], [[ भवन#4 | भवन - 4]]</span></p></li></ol> | <p><span class="HindiText">• असुरकुमार देवों के इंद्रादि व उनका अवस्थान - देखें [[ भवन#2 | भवन - 2]], [[ भवन#4 | भवन - 4]]</span></p></li></ol> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<span class="HindiText"> <p id="1"> (1) देव । ये प्रथम तीन नरक-पृथिवियों तक जाकर नारकियों को उनके पूर्वभव संबंधी वैर का स्मरण कराकर परस्पर लड़ाते हैं । ये न केवल स्वयं नारकियों को मारते हैं अपितु सेवकों से भी उन्हें दंडित कराते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10. 41, 33. 73, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 123. 4-5 </span></p> | <span class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) देव । ये प्रथम तीन नरक-पृथिवियों तक जाकर नारकियों को उनके पूर्वभव संबंधी वैर का स्मरण कराकर परस्पर लड़ाते हैं । ये न केवल स्वयं नारकियों को मारते हैं अपितु सेवकों से भी उन्हें दंडित कराते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 10. 41, 33. 73, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_123#4|पद्मपुराण - 123.4-5]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) विद्याधरों का एक नगर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.117 </span> </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) विद्याधरों का एक नगर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#117|पद्मपुराण -7. 117]] </span> </span></p> | ||
<p id="3">(3) असुर नगर के निवासी होने से इस नाम से अभिहित विद्याधर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.117 </span> </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) असुर नगर के निवासी होने से इस नाम से अभिहित विद्याधर । <span class="GRef"> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#117|पद्मपुराण -7. 117]] </span> </span></p> | ||
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Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- धवला पुस्तक 13/5,5,140/391/7 अहिंसाद्यनुष्ठानरतयः सुरा नाम। तद्विपरीताः असुराः। = जिनकी अहिंसादि के अनुष्ठानों में रति है वे सुर हैं। इनसे विपरीत असुर होते हैं।
- असुरकुमार देवों के भेद
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 2/348-349 सिकदाणणासिपत्ता महबलकाला य सामसबला हि। रुद्दंबरिसा विलसिदणामो महरुद्दखरणामा ॥348॥ कालग्गिरुद्दणामा कुंभो वेतरणिपहुदिअसुरसुरा। गंतूण बालुकंतं णारइयाणं पकोपंति ॥349॥ = सिकतानन, असिपत्र, महाबल, महाकाल, श्याम और शबल, रूद्र, अंबरीष, बिलसित, महारूद्र, महाखर, काल तथा अग्निरुद्र, कुंभ और वैतरणि आदिक असुरकुमार जाति के देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथिवी तक जाकर नारकियों को क्रोधित करते हैं। - असुर देव नरकों में जाकर नारकियों को दुख देते हैं। परंतु सब नहीं
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 3/5/209/3 पूर्वजन्मनि भावितेनातितीव्रेण संक्लेशपरिणामेन यदुपार्जितं पापकर्म तस्योदयात्सततं क्लिष्टाः संक्लिष्टाः-इति विशेषणान्न सर्वे असुरा नारकाणां दुःखमुत्पादयन्ति। किंतर्हि। अम्बाम्बरीषादय एव केचनेति। = पूर्व जन्म में किये गये अतितीव्र संक्लेश रूप परिणामों से इन्होंने जो पाप कर्म उपार्जित किया उसके उदय से ये निरंतर क्लिष्ट रहते हैं, इसलिए संक्लिष्ट असुर कहलाते हैं। सूत्र में यद्यपि असुरों को संक्लिष्ट विशेषण दिया है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि सब असुर नारकियों को दुःख उत्पन्न कराते हैं। किंतु अंबरीष आदि कुछ असुर ही दुःख उत्पन्न कराते हैं।देखें ऊपर शीर्षक सं - 2 - (सिकतानन आदि अनेक प्रकार के असुर देव तीसरी पृथिवी तक जाकर नारकियों को क्रोध उत्पन्न कराते हैं।)
- सुरों के साथ युद्ध करने के कारण असुर कहना मिथ्या है
राजवार्तिक अध्याय 4/10/4/216/7 स्यान्मतं युद्धे देवैः सहास्यन्ति प्रहरणादीनित्यसुरा इतिः तन्न, किं कारणम्। अवर्णवादात्। अवर्णवाद एष देवानामुपरि मिथ्याज्ञाननिमित्तः। कुतः। ते हि सौधर्मादयो देवा महाप्रभावाः, न तेषामुपरि इतरेषां निकृष्टबलानां मनागपि प्रातिलोम्येन वृत्तिरस्ति। अपि च, वैरकारणाभावात् ॥6॥ ततो नासुराः सुरैरुध्यन्ते। = `देवों के साथ असुर का युद्ध होता है, अतः ये असुर कहलाते हैं' यह देवों का अवर्णवाद मिथ्यात्व के कारण किया जाता है, क्योंकि, सौधर्मादिक स्वर्गो के देव महाप्रभावशाली हैं। शुभानुष्ठानों में रहने वाले उनके साथ वैर की कोई संभावना नहीं है। निकृष्ट बल वाले असुर उनका किंचित् भी बिगाड़ नहीं कर सकते। इसलिए अल्प प्रभाव वाले असुरों से युद्ध की कल्पना ही व्यर्थ है।• असुरकुमार देवों के इंद्रादि व उनका अवस्थान - देखें भवन - 2, भवन - 4
पुराणकोष से
(1) देव । ये प्रथम तीन नरक-पृथिवियों तक जाकर नारकियों को उनके पूर्वभव संबंधी वैर का स्मरण कराकर परस्पर लड़ाते हैं । ये न केवल स्वयं नारकियों को मारते हैं अपितु सेवकों से भी उन्हें दंडित कराते हैं । महापुराण 10. 41, 33. 73, पद्मपुराण - 123.4-5
(2) विद्याधरों का एक नगर । पद्मपुराण -7. 117
(3) असुर नगर के निवासी होने से इस नाम से अभिहित विद्याधर । पद्मपुराण -7. 117