आत्मरक्ष देव: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि 4/4/239</span> <p class="SanskritText">आत्मरक्षाः शिरीरक्षोपमानाः।</p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि 4/4/239</span> <p class="SanskritText">आत्मरक्षाः शिरीरक्षोपमानाः।</p> | ||
<p class="HindiText">= जो अंगरक्षक के समान हैं वे आत्मरक्ष कहलाते हैं।</p> | <p class="HindiText">= जो अंगरक्षक के समान हैं वे आत्मरक्ष कहलाते हैं।</p> | ||
<p> | <p><span class="GRef">(राजवार्तिक अध्याय 4/4/5/213)</span> <span class="GRef">( महापुराण सर्ग संख्या 1/22/27)</span></p> | ||
<span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार 3/66</span> <p class=" PrakritText ">चत्तारि लोयपाला सावण्णा होंति तंतवालाणं। तणुरक्खाण समाणा सरीररक्खा सुरा सव्वे ॥66॥</p> | <span class="GRef">तिलोयपण्णत्ति अधिकार 3/66</span> <p class=" PrakritText ">चत्तारि लोयपाला सावण्णा होंति तंतवालाणं। तणुरक्खाण समाणा सरीररक्खा सुरा सव्वे ॥66॥</p> | ||
<p class="HindiText">= चारों लोकपाल तत्रपालों के सदृश और सब तनु रक्षक देव राजा के अंगरक्षक के समान होते हैं।</p> | <p class="HindiText">= चारों लोकपाल तत्रपालों के सदृश और सब तनु रक्षक देव राजा के अंगरक्षक के समान होते हैं।</p> |
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
सर्वार्थसिद्धि 4/4/239
आत्मरक्षाः शिरीरक्षोपमानाः।
= जो अंगरक्षक के समान हैं वे आत्मरक्ष कहलाते हैं।
(राजवार्तिक अध्याय 4/4/5/213) ( महापुराण सर्ग संख्या 1/22/27)
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 3/66
चत्तारि लोयपाला सावण्णा होंति तंतवालाणं। तणुरक्खाण समाणा सरीररक्खा सुरा सव्वे ॥66॥
= चारों लोकपाल तत्रपालों के सदृश और सब तनु रक्षक देव राजा के अंगरक्षक के समान होते हैं।
राजवार्तिक अध्याय 4/4/5/213/1
आत्मानं रक्षंतीति आत्मरक्षास्ते शिरोरक्षोपमाः। आवृतावरणाः प्रहरणोद्यता रौद्राः पृष्टतोऽवस्थायिनः।
= जो अंगरक्षक के समान हैं, वे आत्मरक्ष कहलातें हैं। अंगरक्षक के समान कवच पहिने हुए सशस्त्र पीछे खड़े रहने वाले आत्मरक्ष हैं।
त्रिलोकसार गाथा 224
=बहुरी जैसे राजा के अंगरक्षक तैंसे तनुरक्षक हैं।
2. कल्पवासी इंद्रों के आत्मरक्षकों की देवियों का प्रमाण
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 8/319-320
पडिइंदादितियस्स य णियणियइं देहिं सरिसदेवीओ ...॥319॥ तप्परिवारा कमसो चउएक्कसहस्सयाणिं पंचसया। अड्ढाइज्जसयाणि तद्दलते सट्ठिबत्तीसं ॥320॥
= प्रतींद्रादिक तीन की देवियों की संख्या अपने-अपने इंद्र के सदृश होती है। ॥319॥ उनके परिवार का प्रमाण क्रम से चार हजार, एक हजार, पाँच सौ, अढाई सौ, इसका आधा अर्थात् एक सौ पच्चीस, तिरेसठ और बत्तीस है, अर्थात् सौधर्मेंद्र के आत्मरक्षों की 4000; ईशानेंद्र की 4000; सनत्कुमारेंद्र की 2000; माहेंद्र की 1000; ब्रह्मेंद्र की 500, लांतवेंद्र की 250; महाशुकेंद्र की 125; सहस्रारेंद्र की 63; आनतादि 4 इंद्रों के आत्मरक्षकों की देवियों का प्रमाण कुल 32 है।
3. इंद्रों व अन्य देवों के परिवार में आत्मरक्षकों का प्रमाण - देखें भवनवासी आदि भेद