अनंगलवण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> राम और सीता का पुत्र । यह पुंडरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उत्पन्न हुआ था । मदनांकुश इसका भाई था । दोनों भाई युगल रूप में हुए थे । सिद्धार्थ ने इसे शस्त्र और शास्त्र विद्या सिखायी भी, इसका संक्षिप्त नाम लवण था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_100#17|पद्मपुराण - 100.17-69]] </span>दोनों भाइयों ने राजा पृथु से युद्ध किया था तथा उसे पराजित कर अन्यान्य देशों पर भी विजय प्राप्त की थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_101#26|पद्मपुराण - 101.26-90]], </span>नारद से राम द्वारा सीता के त्यागने का वृत्तांत जानकर इसने राम से भी युद्ध किया था तथा युद्ध में उन्हें रथ रहित किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_102#2|पद्मपुराण - 102.2-182]] </span>सिद्धार्थ से इन दोनों भाइयों का परिचय प्राप्त करके विलाप करते हुए राम और लक्ष्मण इनसे मिले थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_103#43|पद्मपुराण - 103.43-58]], </span>कांचनरथ की पुत्री मंदाकिनी ने स्वयंवर में अनंगलवण का वरण किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_110#1|पद्मपुराण - 110.1]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_110#18|पद्मपुराण - 110.18]], </span>लक्ष्मण के मरण के संदेश से दु:खी होकर संसार की स्थिति पर विचार करते हुए पुन: गर्भवास न करना पड़े इस ध्येय से यह अमृतस्वर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_115#54|पद्मपुराण - 115.54-59]] </span>राम ने इनके पुत्र अनंतलवण को ही राजपद सौंपा था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_119#1|पद्मपुराण - 119.1-2]] </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> राम और सीता का पुत्र । यह पुंडरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उत्पन्न हुआ था । मदनांकुश इसका भाई था । दोनों भाई युगल रूप में हुए थे । सिद्धार्थ ने इसे शस्त्र और शास्त्र विद्या सिखायी भी, इसका संक्षिप्त नाम लवण था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_100#17|पद्मपुराण - 100.17-69]] </span>दोनों भाइयों ने राजा पृथु से युद्ध किया था तथा उसे पराजित कर अन्यान्य देशों पर भी विजय प्राप्त की थी । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_101#26|पद्मपुराण - 101.26-90]], </span>नारद से राम द्वारा सीता के त्यागने का वृत्तांत जानकर इसने राम से भी युद्ध किया था तथा युद्ध में उन्हें रथ रहित किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_102#2|पद्मपुराण - 102.2-182]] </span>सिद्धार्थ से इन दोनों भाइयों का परिचय प्राप्त करके विलाप करते हुए राम और लक्ष्मण इनसे मिले थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_103#43|पद्मपुराण - 103.43-58]], </span>कांचनरथ की पुत्री मंदाकिनी ने स्वयंवर में अनंगलवण का वरण किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_110#1|पद्मपुराण - 110.1]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_110#18|पद्मपुराण - 110.18]], </span>लक्ष्मण के मरण के संदेश से दु:खी होकर संसार की स्थिति पर विचार करते हुए पुन: गर्भवास न करना पड़े इस ध्येय से यह अमृतस्वर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_115#54|पद्मपुराण - 115.54-59]] </span>राम ने इनके पुत्र अनंतलवण को ही राजपद सौंपा था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_119#1|पद्मपुराण - 119.1-2]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
राम और सीता का पुत्र । यह पुंडरीक नगर के राजा वज्रजंघ के यहाँ श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन उत्पन्न हुआ था । मदनांकुश इसका भाई था । दोनों भाई युगल रूप में हुए थे । सिद्धार्थ ने इसे शस्त्र और शास्त्र विद्या सिखायी भी, इसका संक्षिप्त नाम लवण था । पद्मपुराण - 100.17-69 दोनों भाइयों ने राजा पृथु से युद्ध किया था तथा उसे पराजित कर अन्यान्य देशों पर भी विजय प्राप्त की थी । पद्मपुराण - 101.26-90, नारद से राम द्वारा सीता के त्यागने का वृत्तांत जानकर इसने राम से भी युद्ध किया था तथा युद्ध में उन्हें रथ रहित किया था । पद्मपुराण - 102.2-182 सिद्धार्थ से इन दोनों भाइयों का परिचय प्राप्त करके विलाप करते हुए राम और लक्ष्मण इनसे मिले थे । पद्मपुराण - 103.43-58, कांचनरथ की पुत्री मंदाकिनी ने स्वयंवर में अनंगलवण का वरण किया था । पद्मपुराण - 110.1, पद्मपुराण - 110.18, लक्ष्मण के मरण के संदेश से दु:खी होकर संसार की स्थिति पर विचार करते हुए पुन: गर्भवास न करना पड़े इस ध्येय से यह अमृतस्वर नामक मुनिराज से दीक्षित हो गया था । पद्मपुराण - 115.54-59 राम ने इनके पुत्र अनंतलवण को ही राजपद सौंपा था । पद्मपुराण - 119.1-2