नंदन: Difference between revisions
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<p id="3" class="HindiText">(3) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवां इंद्रक विमान । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#45|हरिवंशपुराण - 6.45]], </span>-देखें [[ सौधर्म ]]</p> | |||
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<p id="6" class="HindiText">(6) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन । अपरनाम महोद्यान । यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है । इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यंतर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है । इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सौमनस वन है । <span class="GRef"> महापुराण 5.144, 172, 183, 7.35, 13. 69, 47.263, 57.75, 71.362, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#135|पद्मपुराण -6. 135]], 23.13, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#290|हरिवंशपुराण - 5.290-295]], 307, 328, 8.190, 60.46, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.111-112 </span></p> | |||
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<p id="8" class="HindiText">(8) नंदनवन का प्रथम कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#329|हरिवंशपुराण - 5.329]] </span></p> | |||
<p id="9" class="HindiText">(9) विजय नगर के राजा महेंद्रदत्त के गुरु । महेंद्रदत्त दसवें चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#185|पद्मपुराण - 20.185-186]] </span></p> | |||
<p id="10">(10) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर । <span class="GRef"> महापुराण 60-58 </span></p> | |||
<p id="11">(11) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.75-76 </span></p> | |||
<p id="12">(12) एक मुनि । अपनी आयु का एक मास शेष रह जाने पर अमिततेज ने अपने पुत्रों को राज्य देकर इनसे प्रायोपगमन सन्यास लिया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.408-410 </span>नंदनपुर के राजा अमितविक्रम को धनश्री और अनंतश्री नामक पुत्रियों को इन्होंने धर्मोपदेश दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.13 </span></p> | |||
<p id="13">(13) एक पर्वत । <span class="GRef"> महापुराण 63.33 </span></p> | |||
<p id="14">(14) नंदपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.33 2-335</span></p> | |||
<p id="15">(15) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । <span class="GRef"> महापुराण 76.472 </span></p> | |||
<p id="16">(16) नंदन भवन का राजा यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_37#20|पद्मपुराण - 37.20]] </span></p> | |||
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<p id="18">(18) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे । इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था । यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ । <span class="GRef"> पांडवपुराण 60.5-6, 10, 70.12-16, 88.1-4 </span></p> | |||
<p id="19">(19) सौधर्मेंद्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.167 </span></p> | |||
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[[ नंदघोषा | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ नंदनपुर | अगला पृष्ठ ]] | |||
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[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: न]] | |||
[[Category: प्रथमानुयोग]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- वर्द्धमान भगवान् का पूर्व का दूसरा भव। एक सज्जन के पुत्र थे। -देखें महावीर
- भगवान् के तीर्थ में एक अनुत्तरोपपादिक। -देखें अनुत्तरोपपादिक
- सौधर्म स्वर्ग का सातवाँ पटल। -देखें स्वर्ग - 53
- मानुषोत्तर पर्वत का एक कूट व उस पर निवासिनी एक सुपर्ण कुमारी देवी। -देखें लोक - 5.10
- सुमेरु पर्वत का द्वितीय वन जिसके चारों दिशाओं में चार चैत्यालय हैं। -देखें लोक - 3.6
- सौमनस व नंदन वन का एक कूट। -देखें लोक - 5.5
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर। -देखें विद्याधर
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । हरिवंशपुराण - 22.89
(2) मानुषोत्तर पर्वत की दक्षिण दिशा के रुचककूट का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण - 5.603
(3) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवां इंद्रक विमान । हरिवंशपुराण - 6.45, -देखें सौधर्म
(4) बलदेव का एक पुत्र । हरिवंशपुराण - 48.67
(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें गणधर । महापुराण 43.55, हरिवंशपुराण - 12.56
(6) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन । अपरनाम महोद्यान । यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है । इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यंतर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है । इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सौमनस वन है । महापुराण 5.144, 172, 183, 7.35, 13. 69, 47.263, 57.75, 71.362, पद्मपुराण -6. 135, 23.13, हरिवंशपुराण - 5.290-295, 307, 328, 8.190, 60.46, वीरवर्द्धमान चरित्र 8.111-112
(7) नंदनवन का एक उपवन । हरिवंशपुराण - 5.307
(8) नंदनवन का प्रथम कूट । हरिवंशपुराण - 5.329
(9) विजय नगर के राजा महेंद्रदत्त के गुरु । महेंद्रदत्त दसवें चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था । पद्मपुराण - 20.185-186
(10) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर । महापुराण 60-58
(11) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । महापुराण 62.75-76
(12) एक मुनि । अपनी आयु का एक मास शेष रह जाने पर अमिततेज ने अपने पुत्रों को राज्य देकर इनसे प्रायोपगमन सन्यास लिया था । महापुराण 62.408-410 नंदनपुर के राजा अमितविक्रम को धनश्री और अनंतश्री नामक पुत्रियों को इन्होंने धर्मोपदेश दिया था । महापुराण 63.13
(13) एक पर्वत । महापुराण 63.33
(14) नंदपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । महापुराण 63.33 2-335
(15) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । महापुराण 76.472
(16) नंदन भवन का राजा यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । पद्मपुराण - 37.20
(17) एक देश । सीता के पुत्र लवण और अंकुश ने यह देश जीता था । पद्मपुराण - 101.77
(18) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे । इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था । यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ । पांडवपुराण 60.5-6, 10, 70.12-16, 88.1-4
(19) सौधर्मेंद्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.167