नंदन: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 21: | Line 21: | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) विजयार्ध उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 22.89 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विजयार्ध उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_22#89|हरिवंशपुराण - 22.89]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) मानुषोत्तर पर्वत की दक्षिण दिशा के रुचककूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.603 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) मानुषोत्तर पर्वत की दक्षिण दिशा के रुचककूट का निवासी एक देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#603|हरिवंशपुराण - 5.603]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवां इंद्रक विमान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.45, </span>-देखें [[ सौधर्म ]]</p> | <p id="3" class="HindiText">(3) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवां इंद्रक विमान । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#45|हरिवंशपुराण - 6.45]], </span>-देखें [[ सौधर्म ]]</p> | ||
<p id="4">(4) बलदेव का एक पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48.67 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) बलदेव का एक पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#67|हरिवंशपुराण - 48.67]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 43.55, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.56 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें गणधर । <span class="GRef"> महापुराण 43.55, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#56|हरिवंशपुराण - 12.56]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन । अपरनाम महोद्यान । यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है । इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यंतर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है । इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सौमनस वन है । <span class="GRef"> महापुराण 5.144, 172, 183, 7.35, 13. 69, 47.263, 57.75, 71.362, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 6.135, 23.13, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.290-295, 307, 328, 8.190, 60.46, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.111-112 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन । अपरनाम महोद्यान । यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है । इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यंतर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है । इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सौमनस वन है । <span class="GRef"> महापुराण 5.144, 172, 183, 7.35, 13. 69, 47.263, 57.75, 71.362, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_6#135|पद्मपुराण -6. 135]], 23.13, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#290|हरिवंशपुराण - 5.290-295]], 307, 328, 8.190, 60.46, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.111-112 </span></p> | ||
<p id="7">(7) नंदनवन का एक उपवन । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.307 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) नंदनवन का एक उपवन । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#307|हरिवंशपुराण - 5.307]] </span></p> | ||
<p id="8">(8) नंदनवन का प्रथम कूट । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.329 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) नंदनवन का प्रथम कूट । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#329|हरिवंशपुराण - 5.329]] </span></p> | ||
<p id="9">(9) विजय नगर के राजा महेंद्रदत्त के गुरु । महेंद्रदत्त दसवें चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 185-186 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) विजय नगर के राजा महेंद्रदत्त के गुरु । महेंद्रदत्त दसवें चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#185|पद्मपुराण - 20.185-186]] </span></p> | ||
<p id="10">(10) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर । <span class="GRef"> महापुराण 60-58 </span></p> | <p id="10">(10) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर । <span class="GRef"> महापुराण 60-58 </span></p> | ||
<p id="11">(11) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.75-76 </span></p> | <p id="11">(11) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.75-76 </span></p> | ||
Line 36: | Line 36: | ||
<p id="14">(14) नंदपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.33 2-335</span></p> | <p id="14">(14) नंदपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण 63.33 2-335</span></p> | ||
<p id="15">(15) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । <span class="GRef"> महापुराण 76.472 </span></p> | <p id="15">(15) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । <span class="GRef"> महापुराण 76.472 </span></p> | ||
<p id="16">(16) नंदन भवन का राजा यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 37.20 </span></p> | <p id="16">(16) नंदन भवन का राजा यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_37#20|पद्मपुराण - 37.20]] </span></p> | ||
<p id="17">(17) एक देश । सीता के पुत्र लवण और अंकुश ने यह देश जीता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 101.77 </span></p> | <p id="17">(17) एक देश । सीता के पुत्र लवण और अंकुश ने यह देश जीता था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_101#77|पद्मपुराण - 101.77]] </span></p> | ||
<p id="18">(18) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे । इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था । यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ । <span class="GRef"> पांडवपुराण 60.5-6, 10, 70.12-16, 88.1-4 </span></p> | <p id="18">(18) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे । इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था । यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ । <span class="GRef"> पांडवपुराण 60.5-6, 10, 70.12-16, 88.1-4 </span></p> | ||
<p id="19">(19) सौधर्मेंद्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.167 </span></p> | <p id="19">(19) सौधर्मेंद्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.167 </span></p> |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- वर्द्धमान भगवान् का पूर्व का दूसरा भव। एक सज्जन के पुत्र थे। -देखें महावीर
- भगवान् के तीर्थ में एक अनुत्तरोपपादिक। -देखें अनुत्तरोपपादिक
- सौधर्म स्वर्ग का सातवाँ पटल। -देखें स्वर्ग - 53
- मानुषोत्तर पर्वत का एक कूट व उस पर निवासिनी एक सुपर्ण कुमारी देवी। -देखें लोक - 5.10
- सुमेरु पर्वत का द्वितीय वन जिसके चारों दिशाओं में चार चैत्यालय हैं। -देखें लोक - 3.6
- सौमनस व नंदन वन का एक कूट। -देखें लोक - 5.5
- विजयार्ध की उत्तर श्रेणी का एक नगर। -देखें विद्याधर
पुराणकोष से
(1) विजयार्ध उत्तरश्रेणी का चालीसवाँ नगर । हरिवंशपुराण - 22.89
(2) मानुषोत्तर पर्वत की दक्षिण दिशा के रुचककूट का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण - 5.603
(3) सौधर्म और ऐशान नामक युगल स्वर्गों का सातवां इंद्रक विमान । हरिवंशपुराण - 6.45, -देखें सौधर्म
(4) बलदेव का एक पुत्र । हरिवंशपुराण - 48.67
(5) तीर्थंकर वृषभदेव के सातवें गणधर । महापुराण 43.55, हरिवंशपुराण - 12.56
(6) मेरु की पूर्वोत्तर दिशा में विद्यमान एक वन । अपरनाम महोद्यान । यह भद्रशाल वन से पाँच सौ योजन ऊपर मेरु पर्वत के चारों ओर पाँच सौ योजन चौड़ाई में स्थित है । इस वन के समीप मेरु की बाह्य परिधि इकतीस हजार चार सौ उन्यासी योजन तथा आभ्यंतर परिधि अट्ठाईस हजार तीन सौ सोलह योजन तथा कुछ अधिक आठ कला प्रमाण है । इस वन के साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर सौमनस वन है । महापुराण 5.144, 172, 183, 7.35, 13. 69, 47.263, 57.75, 71.362, पद्मपुराण -6. 135, 23.13, हरिवंशपुराण - 5.290-295, 307, 328, 8.190, 60.46, वीरवर्द्धमान चरित्र 8.111-112
(7) नंदनवन का एक उपवन । हरिवंशपुराण - 5.307
(8) नंदनवन का प्रथम कूट । हरिवंशपुराण - 5.329
(9) विजय नगर के राजा महेंद्रदत्त के गुरु । महेंद्रदत्त दसवें चक्रवर्ती हरिषेण के पूर्वभव का जीव था । पद्मपुराण - 20.185-186
(10) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में विद्यमान एक नगर । महापुराण 60-58
(11) जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी का नृप । यह जयसेना का पति और विजयभद्र का पिता था । महापुराण 62.75-76
(12) एक मुनि । अपनी आयु का एक मास शेष रह जाने पर अमिततेज ने अपने पुत्रों को राज्य देकर इनसे प्रायोपगमन सन्यास लिया था । महापुराण 62.408-410 नंदनपुर के राजा अमितविक्रम को धनश्री और अनंतश्री नामक पुत्रियों को इन्होंने धर्मोपदेश दिया था । महापुराण 63.13
(13) एक पर्वत । महापुराण 63.33
(14) नंदपुर नगर का राजा । इसने मेघरथ मुनि को आहार दिया था । महापुराण 63.33 2-335
(15) आगामी नवें तीर्थंकर का जीव । महापुराण 76.472
(16) नंदन भवन का राजा यह भरत पर आक्रमण करने के लिए अतिवीर्य की सहायतार्थ उसके पास आया था । पद्मपुराण - 37.20
(17) एक देश । सीता के पुत्र लवण और अंकुश ने यह देश जीता था । पद्मपुराण - 101.77
(18) एक वानरवंशी राजा । इसके रथ में सौ घोड़े जुते हुए थे । इसने रावण के ज्वर नामक योद्धा को मारा था । यह भरत के साथ दीक्षित हुआ और अपने तप के अनुसार शुभगति को प्राप्त हुआ । पांडवपुराण 60.5-6, 10, 70.12-16, 88.1-4
(19) सौधर्मेंद्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.167