पुंडरीकिणी: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) जंबूद्वीप के महामेरु से पूर्व दिशा की ओर पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की राजधानी । यशोधर मुनि इसी नगर के मनो<span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>नामक उद्यान में केवली हुए थे । नारदमुनि ने यहाँ सीमंधर जिनेंद्र के दर्शन किये थे । यह नगरी बारह योजन लंबी और नौ योजन चौड़ी है और एक हजार चतुष्टयों और द्वारों से युक्त है । इससे बारह हजार राजमार्ग है । मधुक वन जिसमें पुरूरवा भील रहता था, इसी नगरी का वन था । <span class="GRef"> महापुराण 6.26, 46, 19, 58, 85-86, 63. 209-213 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.257, 263-265, 43.90,</span> <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.15-19 </span>यह नगरी ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ और शांतिनाथ के पूर्वभवों की राजधानी है । प्रथम चक्रवर्ती भरतेश का जीव पीठ नामक राजकुमार, मघना नामक चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव, प्रथम बलभद्र अचल के पूर्वभव का जीव ये सभी इसी नगरी के निवासी थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#11|पद्मपुराण - 20.11-17]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20# | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) जंबूद्वीप के महामेरु से पूर्व दिशा की ओर पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की राजधानी । यशोधर मुनि इसी नगर के मनो<span class="GRef"> हरिवंशपुराण </span>नामक उद्यान में केवली हुए थे । नारदमुनि ने यहाँ सीमंधर जिनेंद्र के दर्शन किये थे । यह नगरी बारह योजन लंबी और नौ योजन चौड़ी है और एक हजार चतुष्टयों और द्वारों से युक्त है । इससे बारह हजार राजमार्ग है । मधुक वन जिसमें पुरूरवा भील रहता था, इसी नगरी का वन था । <span class="GRef"> महापुराण 6.26, 46, 19, 58, 85-86, 63. 209-213 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.257, 263-265, 43.90,</span> <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.15-19 </span>यह नगरी ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ और शांतिनाथ के पूर्वभवों की राजधानी है । प्रथम चक्रवर्ती भरतेश का जीव पीठ नामक राजकुमार, मघना नामक चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव, प्रथम बलभद्र अचल के पूर्वभव का जीव ये सभी इसी नगरी के निवासी थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#11|पद्मपुराण - 20.11-17]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#124|124-126]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#131|131-133]], [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#229|229]] </span>एक नगरी घातकीखंड के पूर्व विदेह-क्षेत्र में भी है । <span class="GRef"> महापुराण 7.80-81 </span></p> | ||
<p id="2">(2) रुचकवर द्वीप में रुचकवर पर्वत के ऊपर दिशावर्ती आठ कूटों में तीसरे अंजनक नामक कूट की निवासिनी दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँवर धारण कर तीर्थंकर की माता की सेवा करती है । इसके चँवर-दंड स्वर्णमयी होते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.699, 715-717, 8.112 | <p id="2" class="HindiText">(2) रुचकवर द्वीप में रुचकवर पर्वत के ऊपर दिशावर्ती आठ कूटों में तीसरे अंजनक नामक कूट की निवासिनी दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँवर धारण कर तीर्थंकर की माता की सेवा करती है । इसके चँवर-दंड स्वर्णमयी होते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#699|हरिवंशपुराण - 5.699]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#715|5.715-717]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_8#112|8.112.113]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_38#35|38.35]]</span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पुराणकोष से
(1) जंबूद्वीप के महामेरु से पूर्व दिशा की ओर पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की राजधानी । यशोधर मुनि इसी नगर के मनो हरिवंशपुराण नामक उद्यान में केवली हुए थे । नारदमुनि ने यहाँ सीमंधर जिनेंद्र के दर्शन किये थे । यह नगरी बारह योजन लंबी और नौ योजन चौड़ी है और एक हजार चतुष्टयों और द्वारों से युक्त है । इससे बारह हजार राजमार्ग है । मधुक वन जिसमें पुरूरवा भील रहता था, इसी नगरी का वन था । महापुराण 6.26, 46, 19, 58, 85-86, 63. 209-213 हरिवंशपुराण 5.257, 263-265, 43.90, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.15-19 यह नगरी ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ और शांतिनाथ के पूर्वभवों की राजधानी है । प्रथम चक्रवर्ती भरतेश का जीव पीठ नामक राजकुमार, मघना नामक चक्रवर्ती के पूर्वभव का जीव, प्रथम बलभद्र अचल के पूर्वभव का जीव ये सभी इसी नगरी के निवासी थे । पद्मपुराण - 20.11-17, 124-126, 131-133, 229 एक नगरी घातकीखंड के पूर्व विदेह-क्षेत्र में भी है । महापुराण 7.80-81
(2) रुचकवर द्वीप में रुचकवर पर्वत के ऊपर दिशावर्ती आठ कूटों में तीसरे अंजनक नामक कूट की निवासिनी दिक्कुमारी देवी । यह हाथ में चँवर धारण कर तीर्थंकर की माता की सेवा करती है । इसके चँवर-दंड स्वर्णमयी होते हैं । हरिवंशपुराण - 5.699, 5.715-717, 8.112.113, 38.35