वसुदेव: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर वृषभदेव के बीसवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.58 </span></p> | <p id="1" class="HindiText"> (1) तीर्थंकर वृषभदेव के बीसवें गणधर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_12#58|हरिवंशपुराण - 12.58]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) यादवों का पक्षधर एक महारथ नृप । यह देवकी का पति और नवें नारायण कृष्ण का पिता था । शौर्यपुर के राजा अंधकवृष्णि इसके पिता तथा रानी सुभद्रा माँ थी । इसके नौ बड़े भाई थे । वे हैं― समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण और अभिचंद्र । कुंती और मद्री इसकी दो बहिनें थीं । इसकी माँ का अपर नाम भद्रा था । यह इतना अधिक सुंदर था कि स्त्रियाँ इसे देखकर व्याकुल हो जाती थीं । राजा समुद्रविजय ने प्रजा के कहने पर इसे राजभवन में कैद रखने का यत्न किया था किंतु दासी शिवादेवी के द्वारा रहस्योद्घाटित होते ही यह मंत्रसिद्धि के बल से घर से निकल कर बाहर चला गया था । प्रवास में इसने विद्याधरों की अनेक कन्याओं को विवाहा था । विजया पर्वत पर विद्याधरों की सात सौ कन्याएँ विवाही थीं । इसकी प्रमुख रानियों और उनसे हुए पुत्रों के नाम निम्न प्रकार है― </p> | <p id="2" class="HindiText">(2) यादवों का पक्षधर एक महारथ नृप । यह देवकी का पति और नवें नारायण कृष्ण का पिता था । शौर्यपुर के राजा अंधकवृष्णि इसके पिता तथा रानी सुभद्रा माँ थी । इसके नौ बड़े भाई थे । वे हैं― समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण और अभिचंद्र । कुंती और मद्री इसकी दो बहिनें थीं । इसकी माँ का अपर नाम भद्रा था । यह इतना अधिक सुंदर था कि स्त्रियाँ इसे देखकर व्याकुल हो जाती थीं । राजा समुद्रविजय ने प्रजा के कहने पर इसे राजभवन में कैद रखने का यत्न किया था किंतु दासी शिवादेवी के द्वारा रहस्योद्घाटित होते ही यह मंत्रसिद्धि के बल से घर से निकल कर बाहर चला गया था । प्रवास में इसने विद्याधरों की अनेक कन्याओं को विवाहा था । विजया पर्वत पर विद्याधरों की सात सौ कन्याएँ विवाही थीं । इसकी प्रमुख रानियों और उनसे हुए पुत्रों के नाम निम्न प्रकार है― </p> | ||
<p>'''रानी का नाम - उत्पन्न पुत्र''' </p> | <p>'''रानी का नाम - उत्पन्न पुत्र''' </p> | ||
<p>विजयसेना - अक्रूर और क्रूर </p> | <p>विजयसेना - अक्रूर और क्रूर </p> | ||
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<p>देवकी - कृष्ण</p> | <p>देवकी - कृष्ण</p> | ||
<p>जरासंध द्वारा समुद्रविजय के साथ इसका युद्ध कराये जाने पर इसने एक पत्र से युक्त बाण समुद्रविजय की ओर छोड़ा था । उसे ग्रहण कर सौ वर्ष बाद समुद्रविजय इससे मिलकर हर्षित हुए थे । द्वारकादहन के बाद यह संन्यासमरण कर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । दूसरे पूर्वभव में यह कुरुदेव में पलाशकूट ग्राम के सोमशर्मा ब्राह्मण का एक दरिद्र पुत्र था और प्रथम पूर्वभव में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70. 93-97, 200-309, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#224|पद्मपुराण - 20.224-226]], </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 79, 18. 9-15,19 19.334-35, 31. 125-128, 48.54-65, 50.78, 61.91, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.132, 11.10-30 </span></p> | <p>जरासंध द्वारा समुद्रविजय के साथ इसका युद्ध कराये जाने पर इसने एक पत्र से युक्त बाण समुद्रविजय की ओर छोड़ा था । उसे ग्रहण कर सौ वर्ष बाद समुद्रविजय इससे मिलकर हर्षित हुए थे । द्वारकादहन के बाद यह संन्यासमरण कर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । दूसरे पूर्वभव में यह कुरुदेव में पलाशकूट ग्राम के सोमशर्मा ब्राह्मण का एक दरिद्र पुत्र था और प्रथम पूर्वभव में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 70. 93-97, 200-309, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#224|पद्मपुराण - 20.224-226]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#79|हरिवंशपुराण - 1.79]], 18. 9-15,19 19.334-35, 31. 125-128, 48.54-65, 50.78, 61.91, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.132, 11.10-30 </span></p> | ||
<p id="3">(3) शामली-नगर के दामदेव ब्राह्मण का ज्येष्ठ पुत्र और सुदेव का बड़ा भाई । इसकी स्त्री का नाम विश्वा था । मुनिराज श्रीतिलक को उत्तम भावों से आहार देकर यह स्त्री सहित उत्तरकुरु की उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#39|पद्मपुराण - 108.39-42]] </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) शामली-नगर के दामदेव ब्राह्मण का ज्येष्ठ पुत्र और सुदेव का बड़ा भाई । इसकी स्त्री का नाम विश्वा था । मुनिराज श्रीतिलक को उत्तम भावों से आहार देकर यह स्त्री सहित उत्तरकुरु की उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_108#39|पद्मपुराण - 108.39-42]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) गिरितट नगर का एक ब्राह्मण । यह सोमश्री का पिता था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 23. 26, 29 </span></p> </div> | <p id="4" class="HindiText">(4) गिरितट नगर का एक ब्राह्मण । यह सोमश्री का पिता था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_23#26|हरिवंशपुराण - 23.26]], 29 </span></p> </div> | ||
Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
हरिवंशपुराण/ सर्ग/श्लोक - अंधकवृष्णि का पुत्र, समुद्रविजय का भाई। (18/12)। बहुत अधिक सुंदर था। स्त्रियाँ सहसा ही उस पर मोहित हो जाती थीं। इसलिए देश से बाहर भेज दिये गये जहाँ अनेक कन्याओं से विवाह हुआ। (सर्ग 19-31) अनेक वर्षों पश्चात् भाई से मिलन हुआ। (सर्ग 32) कृष्ण की उत्पत्ति हुई। (35/19)। तथा अन्य भी अनेक पुत्र हुए। (48/54-65)। द्वारिका जलने पर संन्यासधारण कर स्वर्ग सिधारे। (61/87-91)।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर वृषभदेव के बीसवें गणधर । हरिवंशपुराण - 12.58
(2) यादवों का पक्षधर एक महारथ नृप । यह देवकी का पति और नवें नारायण कृष्ण का पिता था । शौर्यपुर के राजा अंधकवृष्णि इसके पिता तथा रानी सुभद्रा माँ थी । इसके नौ बड़े भाई थे । वे हैं― समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान्, विजय, अचल, धारण, पूरण और अभिचंद्र । कुंती और मद्री इसकी दो बहिनें थीं । इसकी माँ का अपर नाम भद्रा था । यह इतना अधिक सुंदर था कि स्त्रियाँ इसे देखकर व्याकुल हो जाती थीं । राजा समुद्रविजय ने प्रजा के कहने पर इसे राजभवन में कैद रखने का यत्न किया था किंतु दासी शिवादेवी के द्वारा रहस्योद्घाटित होते ही यह मंत्रसिद्धि के बल से घर से निकल कर बाहर चला गया था । प्रवास में इसने विद्याधरों की अनेक कन्याओं को विवाहा था । विजया पर्वत पर विद्याधरों की सात सौ कन्याएँ विवाही थीं । इसकी प्रमुख रानियों और उनसे हुए पुत्रों के नाम निम्न प्रकार है―
रानी का नाम - उत्पन्न पुत्र
विजयसेना - अक्रूर और क्रूर
श्यामा - ज्वलनवेग, अग्निवेग
गंधर्वसेना - वायुवेग, अमितगति
पद्मावती - दारु, वृद्धार्थ, दारुक
नीलयशा - सिंह, पतंगज
सोमश्री - नारद, मरुदेव
मित्रश्री - सुमित्र
कपिला - कपिल
पद्मावती - पद्म, पद्मक
अश्वसेना - अश्वसेन
पौंड्रा - पौंड्र
रत्नवती - रत्नगर्भ, सुगर्भ
सोमदत्तसुता - चंद्रकांत, शशिप्रभ
वेगवती - वेगवान्, वायुवेग
मदनवेगा - दृढ़मुष्टि, अनावृष्टि, हिममुष्टि
बंधुमती - बंधुषेण, सिंहसेन
प्रियंगसुंदरी - शीलायुध
प्रभावती - गंधार, पिंगल
जरा - जरत्कुमार, वाल्हीक
अवंती - सुमुख, दुःख, महारथ
रोहिणी - बलदेव, सारण, विदूरथ
बालचंद्रा - वज्रदंष्ट्र, अमितप्रभ
देवकी - कृष्ण
जरासंध द्वारा समुद्रविजय के साथ इसका युद्ध कराये जाने पर इसने एक पत्र से युक्त बाण समुद्रविजय की ओर छोड़ा था । उसे ग्रहण कर सौ वर्ष बाद समुद्रविजय इससे मिलकर हर्षित हुए थे । द्वारकादहन के बाद यह संन्यासमरण कर स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । दूसरे पूर्वभव में यह कुरुदेव में पलाशकूट ग्राम के सोमशर्मा ब्राह्मण का एक दरिद्र पुत्र था और प्रथम पूर्वभव में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ था । महापुराण 70. 93-97, 200-309, पद्मपुराण - 20.224-226, हरिवंशपुराण - 1.79, 18. 9-15,19 19.334-35, 31. 125-128, 48.54-65, 50.78, 61.91, पांडवपुराण 7.132, 11.10-30
(3) शामली-नगर के दामदेव ब्राह्मण का ज्येष्ठ पुत्र और सुदेव का बड़ा भाई । इसकी स्त्री का नाम विश्वा था । मुनिराज श्रीतिलक को उत्तम भावों से आहार देकर यह स्त्री सहित उत्तरकुरु की उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हुआ था । पद्मपुराण - 108.39-42
(4) गिरितट नगर का एक ब्राह्मण । यह सोमश्री का पिता था । हरिवंशपुराण - 23.26, 29