सप्तवर्ण: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) प्रत्येक गांठ पर सात-सात पत्तों को धारण करने वाले वृक्षों का समवसरण में एक उद्यान । <span class="GRef"> महापुराण 22.199-204 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) प्रत्येक गांठ पर सात-सात पत्तों को धारण करने वाले वृक्षों का समवसरण में एक उद्यान । <span class="GRef"> महापुराण 22.199-204 </span></p> | ||
<p id="2">(2) समवसरण में सप्तपर्ण वन के मध्य रहने वाला एक चैत्यवृक्ष । इसके मूलभाग में जिन प्रतिमाएँ विराजमान होती है । तीर्थंकर अजितनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे मुनि दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 22. 200-204, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20-38 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) समवसरण में सप्तपर्ण वन के मध्य रहने वाला एक चैत्यवृक्ष । इसके मूलभाग में जिन प्रतिमाएँ विराजमान होती है । तीर्थंकर अजितनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे मुनि दीक्षा ली थी । <span class="GRef"> महापुराण 22. 200-204, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20-38 </span></p> | ||
<p id="3">(3) सप्तपर्णपुर का निवासी एक देव । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.427 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) सप्तपर्णपुर का निवासी एक देव । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#427|हरिवंशपुराण - 5.427]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) संख्यात द्वीपों के पश्चात् जंबूद्वीप के समान दूसरे जंबूद्वीप का एक वन । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.397-422 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) संख्यात द्वीपों के पश्चात् जंबूद्वीप के समान दूसरे जंबूद्वीप का एक वन । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#397|हरिवंशपुराण - 5.397-422]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
(1) प्रत्येक गांठ पर सात-सात पत्तों को धारण करने वाले वृक्षों का समवसरण में एक उद्यान । महापुराण 22.199-204
(2) समवसरण में सप्तपर्ण वन के मध्य रहने वाला एक चैत्यवृक्ष । इसके मूलभाग में जिन प्रतिमाएँ विराजमान होती है । तीर्थंकर अजितनाथ ने इसी वृक्ष के नीचे मुनि दीक्षा ली थी । महापुराण 22. 200-204, पद्मपुराण 20-38
(3) सप्तपर्णपुर का निवासी एक देव । हरिवंशपुराण - 5.427
(4) संख्यात द्वीपों के पश्चात् जंबूद्वीप के समान दूसरे जंबूद्वीप का एक वन । हरिवंशपुराण - 5.397-422